Saturday 14 May 2016

मैं क्या करूँ?


एक काली उदास रात को
गहरी नींद की गिरफ़्त में थी मैं
ऐसे में वह मेरे सपनों में आया.
यूँ रुला भी गया, यूँ मना भी गया.
मुझसे गले लग कर मेरे आंसू पोंछता भी गया.
भीगी आँखें थी मेरी जब मैं जागी
इस कदर वह सपने को वास्तविकता में बदलता गया.
अब मैं क्या करूँ?

सोचा उससे सपनों से आज़ाद कर दूँ,
हकीकत में ही उससे क्यों न ले आऊं?
पर वह इस बात से अंजान
मुझसे नाराज़ हो गया, बहुत दूर हो गया.
अब मैं क्या करूँ?

सोचा उसकी मूर्ति ही बना लूँ.
मिटटी, पानी और प्यार मिलाया,
उसकी काया को अपने हाथों से संवारा 
एक शिल्पकार का हुन्नर दिखाया.
मगर उस मूर्ति में जान आ गई
और वह वहां से चला गया.
अब मैं क्या करूँ?

सोचा उसकी तस्वीर ही बना लूँ.
अपने कमरे की एक दीवार पर
कई रंगों से, प्यार भरे वर्ण से
उसकी मोहक तस्वीर बनाई.
एक कलाकार का हुन्नर दिखाया.
मगर उस तस्वीर में जान आ गई
और वह वहां से चला गया.
अब मैं क्या करूँ?

सोचा उसके नाम का एक काव्य लिखूं.
अपने ह्रदय के शब्दकोष से शब्द चुने
और उसके वर्णन में कई पद रचे.
एक कवियत्री का हुन्नर दिखाया.
मगर उस काव्य में जान आ गई
और वह वहां से चला गया.
अब मैं क्या करूँ?

जो भी प्रयास करूँ
वह तो उठ कर चला जाता है.
उससे मनाने के लिए
अब मैं क्या करूँ?

फिर शांत चित्त से सोचा.
मेरे मन में एक महल बनाया.
महल में एक भूलभुलैया बनाई.
उससे फिर से अपने विचारों में ले आई
और उस भूलभुलैया के बीच छोड़ आई.
वह वहां से बाहर निकलने का रास्ता ढूंढ रहा है.
वह आज भी मेरे विचारों में क़ैद है.
अब कोई बताये कि

वह क्या करे?

3 comments:

  1. वाह !!!
    लेकिन ये तो ज़ोर ज़बरदस्ती की बात है.

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  2. वाह !!!
    लेकिन ये तो ज़ोर ज़बरदस्ती की बात है.

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    1. Apni marzi se na sahi, woh hamare nahi to aur kisike bhi nahi ;)

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