Friday 6 May 2016

ख़त - 7

आकाश ने सर झुकाया. ऐसा नहीं था कि उसने वह सब जानबूझ कर चोरी-छिपे सुना था. मगर अब बताते वक़्त उससे ऐसा ही लग रहा था.
"मुझे कॉल करना था और सिटींग रूम में सबकी बातों और टीवी की आवाज़ की वजह से साफ़ सुनाई नहीं दे रहा था. इसलिए मैं आपके किचन से होकर बैकयार्ड में कॉल करने गया. दरवाज़ा खुला था इसलिए सब साफ़ सुनाई दिया जब ..."
"जब?"
मगर आकाश ने जवाब न देकर सिर्फ उसकी तरफ देखा. नैना ने उसकी आँखों में शायद दया देखी ... या हमदर्दी? ... ओह! तो पराग और उसके बीच में जो हुआ उसके बारे में आकाश जानता था. नैना उलझे हुए खयालों मन में लिए खिड़की की तरफ देख रही थी. क्या कहती? 'नहीं नहीं! आपको गलतफ़हमी हुई है ... पराग ने पहली बार हाथ उठाया है' ... 'नहीं नहीं! यह तो पति-पत्नी के बीच होने वाली आम नोकझोंक है' ... मगर वह ऐसा कुछ क्यों कहती? कब तक यूँ पर्दादारी जारी रखती ... आकाश ने हलके से अपना हाथ नैना के हाथ पर रख दिया.
"एक बात पूछूं?"
नैना कुछ नहीं बोली ... न 'हाँ' न 'ना' ... 
"आप क्यों झेल रही हैं इस आदमी को? इस जीवन को?"
नैना अब भी चुप थी. वह क्यों झेल रही थी यह सब? खुद से कई बार पूछा था उसने. आज पहली बार कोई और भी पूछ रहा था. 
"मैं नहीं जानती."
"क्या आप के माँ-बाप जानते हैं आपका हाल?"
"नहीं. मैंने नहीं बताया?"
"क्यों? क्यों नहीं बताया?"
"वह जानेंगे तो उनका दिल नहीं दुखेगा क्या?"
"और जब उन्हें पता चलेगा कि आप इतने साल से यह सब छिपा रही थी तो उन्हें बहुत ख़ुशी होगी शायद?"
यह सुनकर नैना के माथे पर शिकन आ गयी और अब वह आकाश की तरफ देख रही थी. 
"यकीन मानिए जब उन्हें पता चलेगा कि आपने उनको क्या कुछ नहीं बताया तो उन्हें कई हद्द ज़्यादा दर्द होगा. कि आपने उनको इस लायक ही नहीं समझा कि उनसे अपनी आपबीती कह सकें?"
उसने अब नैना का हाथ अपने हाथों में रखा और कहा 
"सागर आपकी बहुत इज़्ज़त करता है. उसने मुझे बताया की आप डबल ग्रेजुएट हैं. आप सुन्दर हैं, पढ़ी-लिखी है, अपने दो पैरों पर खड़े होने की क़ाबिलियत रखती हैं. आप के घर को तो मैं देख ही रहा हूँ - कितना साफ़ सजाया हुआ है. फिर आप में आत्मविश्वास की यह कमी क्यों?"
क्यों? क्या जवाब देती? रोज़ पराग के मुँह से सुनकर की वह आलसी है, मुर्ख है, निकम्मी है, झूठी है ... यह सब सुनते सुनते जैसे उससे अब खुद में भी ऐब नज़र आने लगे थे. कभी पराग से कह देने को जी करता था कि इतनी ही बुरी हूँ मैं तो छोड़ क्यों नहीं देते मुझे? मगर फिर उससे ध्रुव का खयाल आता. एक बच्चे को उसके माँ और बाप दोनों की ज़रुरत होती है.
"ध्रुव..."


(to be continued ...)

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