Monday 9 May 2016

ख़त - 9

आप कड़ी धुप में चले जा रहे हो और कहीं एक घने पढ़ के नीचे ठंडी छाँव मिल जाए तो? आप बारिश में भीगते भीगते जा रहे हों और कहीं कोई सराय मिल जाए तो? ठंड में हाथ पैर ठिठुर रहे हों और ऐसे में तप्ती आग के करीब बैठने मिल जाये तो? क्या महसूस करेंगे? राहत? चैन? सुकून? या कोई शब्द नहीं सूझ रहा? बस वैसा ही एहसास नैना को हुआ. उसने अपने आप को आकाश से अलग करने की कोशिश भी नहीं की. आकाश के चुंबन में वासना नहीं थी ... कुछ और था ... चुंबन से आलिंगन ... वह आकाश से लिपट गई ... उसकी उँगलियाँ आकाश के बालों में सुलझ उलझ रही थी ... कहाँ शरीर खत्म होते और कहाँ साये शुरू होते ... पहली बार नैना की आँखों में प्रेम के अधिप्रवह के कारण आंसू निकले रहे थे. आकाश के सीने से लग कर जैसे उसने अपने दिल के दर्द उसके साथ बाँट दिए हों. आकाश उससे सोफे तक ले गया. दोनों बैठे और उसने फिर से नैना को चूमा. उसके बाल, उसकी आँखें, उसके कान, उसके गाल, उसके होंठ ... और नैना ... तप्ती ज़मीन पर जैसे बारिश की बूँदें गिर रही हों. नैना उससे लिपटी रही और वह नैना के बाल सहलाता रहा ... और यूँही न जाने कब ... कितने दिनों बाद उससे चैन की नींद आई.

टिंग टिंग टिंग ... नैना अपनी माँ के साथ किसी मंदिर में थी. कुछ जाने कुछ अनजाने चेहरे नज़र आये ... एक औरत कब से मंदिर की घंटी बजाये जा रही थी ... टिंग टिंग टिंग ...नैना की माँ उससे कुछ कह रही थी पर घंटी की आवाज़ की वजह से उससे कुछ साफ़ सुनाई नहीं दे रहा था. उसने आगे बढ़कर उस औरत के कांधे पर हाथ रखा ... टिंग टिंग टिंग ... यह तो उसके फ़ोन से बज रही थी ... वह एकदम से जाग गई. उसके सुबह 5 बजे का अलार्म! हर शनिवार रात को वह यह अलार्म बंद कर देती थी मगर ... उफ़! अपने आपको सोफे पर पाकर रात की यादें ताज़ा हों गई. आकाश वहां नहीं था. लगता है वह उसकी बाहों में सो गई होगी और आकाश ने उस पर चादर रख दी होगी. और अगर पराग ने पुछा की वह वहां नीचे क्यों सोई थी तो? कहीं पराग नीचे तो नहीं आया था
वह दबे पाँव अपने कमरे में गई ... पराग खर्राटें भर रहा था. फिर ध्रुव के कमरे में ... वह भी सो रहा था. वह मुड़ कर चली जाती मगर गेस्ट रूम का दरवाज़ा आधा खुला था. झाँक कर देखा ... आकाश और सागर सो रहे थे. वह नीचे किचन में गई, किचन साफ़ किया और फिर से अपने कमरे में चली गई. आधे घंटे के लिए सो जाएगी ... मगर ... रात की  यथार्थता उससे एक सपना सा लग रही थी ... वह करवटें बदल बदल कर जैसे आकाश की बातों को उलट पुलट कर उन्हें सेच रही हो. उसने उस हकीकत को जीवित करते हुए सामने रखा जिससे नैना ने अपने दिल के किसी कोने में दफ़न कर दिया था. और इसी सोच में सात बज गए.

नैना नहा-धो कर, पूजा करके किचन में गई और नाश्ता बनाने लगी. पहले ध्रुव, फिर सागर, फिर आकाश और फिर पराग ... बारी बारी सब नीचे आए. नाश्ता करके सागर और आकाश बिर्मिंघम के लिए निकल दिए. उसने आकाश से नज़रें नहीं मिलाई पर जाते जाते आकाश ने उससे कहा 'अपना खयाल रखना'. पर खयाल में तो जैसे अब किसी और के खयाल शामिल को करना? उनके जाते ही पराग फिर से सो गए. नैना ने ध्रुव को नहलाया, तैयार किया और पार्क में ले गई. वह उस माहौल से दूर होना चाहती थी जिसकी वजह से उसका मन दुविधा में था ... एक अजीब असमंजस में था. एक घंटे बाद ध्रुव को अपने पड़ोसी के बेटे के साथ खेलने के लिए उसके घर पर छोड़ आई. अपने घर आई तो देखा पराग फ्रेश हो कर नीचे सिटींग रूम में पेपर पढ़ रहा था. उसने गहरी साँस ली और कहा "पराग, मुझे डिवोर्स चाहिए."



(... to be continued)

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