Monday 2 May 2016

ख़त - 3

अपने सारे दर्द, सारे गिले शिकवे, जीवन के प्रति नीरसता को नैना ध्रुव को देख कर भूल जाती. ध्रुव था ही इतना प्यारा. एक महकता फूल. और उस पर वात्सल्य बरसा कर उस फूल को सींचते हुए चार साल हो गए. चार साल का बच्चा हमेशा सवालों की झड़ी लिए घूमता फिरता. तो नैना के पास भी जवाबों की लड़ी तैयार रहती. ध्रुव की कल्पना और जिज्ञासा में उससे एक तेजस और तीव्र दिमाग दिखता.
काम की थकान मिटाने के लिए बियर सचमुच कितनी असरकारक है यह निसंदेह संदेहास्पद था. नैना पराग से अक्सर कहती कि ध्रुव बड़ा हो रहा है और उससे ध्रुव के सामने इतनी शराब नहीं पीनी चाहिए. पराग इस बात से सहमत था. इसलिए ध्रुव के सोने के बाद जी भर कर पीता. पीने की मात्रा तो नहीं बदली, पीने का वक़्त बदल दिया. नैना समझ नहीं पा रही थी कि शराब पीने कि वजह से पराग का बर्ताव ऐसा है या शराब इस मामले में निर्दोष थी? चार पाइंट पीने के बाद पराग को याद नहीं रहता कि वह क्या कर रहा है, क्या कह रहा है. शराब जैसे उसकी ढाल बन चुकी हो. नैना ने कस्मे दिलाई पर पराग के जीवन में उसकी अहमियत ही क्या थी जो उससे फर्क पड़ता.

महीने में एक दो बार पराग अपने दोस्तों को भी घर पर बुलाता. फिर तो मदिरा की महफ़िल जमती. यूँ तो पराग के दोस्त हर लिहाज़ से शरीफ ही थे पर मुफ्त में मिली शराब को मंदिर का प्रसाद समझते - मना कैसे करते? जैसे मना कर देना शराब की शान में गुस्ताखी होती. कुछ दोस्त लंडन के परिवहन की तरह नियमित मिलते तो कुछ लंडन के मौसम की तरह अनियमित थे. ऐसे नियमित करीबी दोस्तों में मोहित, जावेद, पियूष और सागर थे. मोहित और जावेद शादीशुदा थे, पियूष तीन साल से 'एक आदर्श पत्नी' को ढूँढ रहा था मगर बीच में बार-बार बनती बिछड़ती गर्लफ्रेंड उसके इस खोज में रूकावट दाल देती. सागर बिर्मिंघम में रहता था और उसकी पत्नी, भाविका, अहमदाबाद में थी. साल में एक दो बार वह अपनी पत्नी और माँ-बाप से मिलने भारत चला जाता. कोशिश कर रहा था कि भाविका को अपने पास बिर्मिंघम बुला सके पर इंग्लैंड के अप्रवास नियम और हालात को देखते यह मुमकिन नहीं हो पा रहा था. अलबत्ता भाविका के बड़े भाई का दोस्त, आकाश, बिज़नेस के सिलसिले में एक महीने के लिए लंडन आया था. और उसी महीने की एक शाम को पराग ने फिर से इन्ही दोस्तों के साथ शराब की महफ़िल सजाई और सागर को कहा कि आकाश को भी साथ ले आए.

(to be continued ...)

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