Tuesday 3 May 2016

ख़त - 4

रंगों में अगर एक रंग और शामिल हो जाए तो शाम कुछ और भी ज़्यादा रंगीन हो जाए. मगर यह रंग कुछ अलग सा था. आकाश उन लोगों में से था जो किसी पार्टी में कंपनी देने के लिए बियर का एक मग या व्हिस्की का एक पेग हाथों में ही पकड़े तीन-चार घंटे काट लेते. इंग्लैंड आकर उससे अजीब तो लगा कि कैसे यहाँ लोग शराब को एक टॉनिक की तरह पीते हैं. मगर वहां की ठण्ड को महसूस करने के बाद उससे कारण समझ में आ गया. वह सागर के साथ पराग के घर गया.
बड़ा खूबसूरत घर था. प्यार से सजाया हुआ. जावेद और पियूष आ चुके थे. बस मोहित का इंतज़ार हो रहा था, जो शनिवार की ट्रैफिक की वजह से शायद कहीं फस गया था. सागर ने आकाश का परिचय सबसे करवाया ... और फिर सबके जाम छलके. कुछ देर बाद मोहित भी आ गया. हसी-मज़ाक-बातें सब चलता रहा. नैना एक ट्रे में मसाला पापड़ ले आई. मोहित ने हस्ते हुए कहा "भाभी, आज एक बन्दा और भी है." यह कहते उसने आकाश के सामने देखा. नैना के मुस्कुराते हुए आकाश से कहा "सुना है आप कुछ दिन पहले ही इंडिया से आये हैं. कैसा है वहां गर्मी इस बार? यहाँ आकर तो आपको बहुत ठंड लग रही होगी?" इससे पहले की आकाश कुछ जवाब देता पराग ने कहा "वो यहाँ इतनी दूर मौसम की जानकारी थोड़ी लेने-देने आया है? जाओ और थोड़े चना-जोर-गरम ले आओ". नैना चुपके से प्लेट रख कर चल दी. मगर आकाश ने उसकी आँखों में कुछ ऐसा देख लिया जो उससे बड़ा अजीब सा लगा ... नैना चाहे मुस्कुरा कर चली गयी हो पर वो मुस्कराहट उसके आँखों तक नहीं पुहंची थी. उससे पराग का रवैया भी बड़ा अजीब लगा. पत्नी को घर की इज़्ज़त कह कर उन पर पाबंदियां लगाना और फिर उसी 'घर की इज़्ज़त' के साथ इस तरह बात करना ... अजीब होती है कुछ लोगों की सोच.
"अरे आकाश! तुम तो कुछ ले ही नहीं रहे हो. शरमाते क्यों हो?"
"जी नहीं. मैं नहीं पीता. मतलब एक पेग से ज़्यादा नहीं."
"क्यों? जचती नहीं?"
"उस हद तक कभी पी ही नहीं की जान सकूँ कि जचती है या नहीं. बस मुझे कुछ ख़ास शौक नहीं इसका."
"यहाँ तीन महीने रह जाओ. यह शौक ज़रुरत बन जायेगा."
"शायद ... मगर फिलहाल तो ऐसा कोई इरादा नहीं. मैंने शराब की वजह से इंसान को हैवान बनते देखा है. अपने आप को कभी भी उस रूप में नहीं देखना चाहता इसलिए दूर ही रहता हूँ इस बला से."
"अरे ऐसा कुछ नहीं ... हम सब को देखो ... हम क्या हैवान हैं?"
आकाश ने बात को सँभालते हुए कहा "नहीं, पर अगर मैं आप सब जैसा सुलझा हुआ न निकला तो? खैर सुना है यहाँ इम्पोर्ट ड्यूटी बढ़ाने वाले हैं? यूरोपियन देशों के अलावा कहीं से कुछ इम्पोर्ट करना हो तो अब ज़्यादा ड्यूटी लगेगी?" ... और बातों का रुख मुड़ गया ...
वहां नैना किचन में ध्रुव के लिए गरम चॉकलेट मिल्क बना कर उससे पिला रही थी. खाना बना लिया था - अंडे की कर्री, पनीर भुर्जी, तरका दाल, जीरा पुलाव, रायता, सेलड ... सब तैयार था. नान का आटा गूंध रखा था. जब सब खाने बैठेंगे तो गरमा गरम परोस देगी.
ध्रुव के हाथ-मुंह धो कर उससे सुलाने के लिए उसके कमरे में ले गई. खिड़की पर परदे गिराते हुए देखा बहार ज़ोरों की बारिश जारी है. उफ़! ठंड भी बढ़ चुकी थी. ध्रुव को मोज़े पहनाए, बेड पर सुलाया और हलकी से थपकियाँ देने लगी. ध्रुव ने पुछा "मम्मी, जब आप छोटी थी तब भी इतनी बारिश होती थी?"
"क्या?"
"आप जब छोटी थी तब भी इतनी ही बारिश होती थी?"
"बेटा, मैं जहाँ बड़ी हुई हूँ वहां साल के सिर्फ तीन महीने ही बारिश होती थी. यहाँ की तरह पूरे साल नहीं. क्यों पूछ रहे हो?"
"मैं सोच रहा था जब ऊपर पानी खत्म हो जायेगा तब क्या होगा?"
"एक काम करो. चुपचाप सो जाओ. दिमाग को आराम मिलेगा. सुबह फ्रेश हो जाओगे तो इस बात का जवाब सोच सकोगे. चलो आँखें बंद करो. गुड नाईट!"
ठंड और गरम दूध ... दिन भर की उछल कूद ... ध्रुव दो मिनट में सो गया. नैना उसका माथा सहला रही थी ... वो जहाँ बड़ी हुई थी वहां ... वहां ठंड के मौसम में भी करारी धुप निकलती ... गर्मियों के मौसम में ठंडे ठंडे गोले ... बारिश में भीगते हुए गरमागरम भुट्टा खाना ... वहां तो ...

"नैना! नैना! कहाँ हो?"


(to be continued ...)

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