Sunday 22 May 2016

जिस दिन ... - 4

- 4 -

नीरा! क्या खूब जोड़ी थी नीरा और हर्ष की! बिलकुल हर्ष की मम्मी की पसंद अनुसार. कैसे? नीरा के माँ-बाप बचपन में ही चल बसे थे और वह अपने मामा-मामी के घर ही बड़ी हुई थी. हर्ष की मम्मी का पसंद का तर्क कुछ इस तरह था कि अगर बहु का मायका ही नहीं होगा तो वह मायके जाने की बात ही नहीं करेगी. 
नीरा देखने में सुंदर थी और बड़ी समझदार भी थी. पर उसकी पढ़ाई पूरी न हो पाई थी. कॉलेज जाने का मौका ही नहीं मिला. आखिर अपने माँ-बाप जितना प्रोत्साहन कोई और देता है? उससे वैसे तो अपने ससुराल में सारे सुख मिल रहे थे ... नहीं मिल रहा था तो वह था सम्मान. हर्ष अक्सर अपने ही रिश्तेदारों और दोस्तों के बीच में नीरा का मज़ाक उड़ाया करता रहता. एक दिन नीरा ने बड़े प्यार से हर्ष से कहा "आप को अगर मेरी कोई बात अच्छी नहीं लगती हो तो आप मुझे एकांत में बता दिया कीजिये. यूँ सबके सामने कहते हैं तो मुझे बड़ा अजीब सा लगता है."
हर्ष ने उससे प्यार से बाहों में लेते हुए कहा "अरे पगली! मैं क्या कहता हूँ वह मत देख ... तुझसे कितना प्यार करता हूँ वह देख!"
मगर नीरा इस जवाब से पूरी तरह संतुष्ट नहीं थी. सोचा समय के साथ या तो हर्ष की आदत बदलेगी और या तो उससे ही यह सब सुनने की आदत पड़ जाएगी. मगर फिर हर्ष घर में भी आम बातों पर नीरा में नुक्स निकालता रहता. खामियां बताता रहता. इमरान यह बात जानता था मगर वह इससे मिया-बीवी की आपस की बात समझ कर कुछ नहीं कहता. यूँही कुछ और महीने बीते और अब तो हर्ष अपने दोस्तों के घर दावत पर जाता तो वहां भी बोल देता "भाभी, आप ही नीरा को खाना पकाना सिखा दीजिये. उससे तो खिचड़ी भी ढंग की नहीं बनती!"
एक रात ऐसी ही एक दावत से जब हर्ष और नीरा घर लौटे तो नीरा रो पड़ी. 
"हर वक़्त, हर जगह मुझे क्यों नीचा दिखाते रहते हैं?"
हर्ष गुस्से में बोला "तुम्हे तो मज़ाक लेना भी नहीं आता! मैं यूँही मज़ाक में बोलता रहता हूँ."
"मज़ाक कई और बातों का भी तो हो सकता है. कभी मेरे खाने पकाने को लेकर या कभी मेरे कपड़ों को लेकर ... एक हद होती है मज़ाक की. और आप वह हद बार बार पार करते रहते हैं हर्ष!"
"उफ़! कैसी औरत से पाला पड़ा है! तुम्हारी जगह किसी पढ़ी-लिखी लड़की के साथ शादी करता तो वह ..."
"मुझसे ज़्यादा पढ़ी-लिखी होती तो आपका यह रवैया यह स्वाभाव एक महीने से ज़्यादा सहन ना करती."
"ज़रूर सहन करती. तुम्हारी जैसी तो कई मिल जाती. मज़ाक को मज़ाक समझ कर हस तो लेती!"
"और अगर मैं भी सबके सामने आपका इस कदर मज़ाक उड़ाती तो?"
यह सुनते ही हर्ष ने अपना हाथ तो उठाया पर वहीं रुक गया. वह एक औरत को कैसा मारता? और वह भी जब वह औरत उसकी पत्नी हो? उस एक पल में जैसे उसने अपनी हद नीरा को दिखा दी थी. और नीरा इस हद को एक शुरुआत समझ कर चौंक गई थी. हर्ष अपने कमरे में सोने चला गया. बात बढ़ाने से कोई फायदा नहीं था. 
अगले दिन सुबह हर्ष देर से उठा. रविवार जो था. आज उससे इमरान के साथ धवल के घर जाना था. नहाकर तैयार हो कर नीचे आया. नीरा कहीं नज़र नहीं आ रही थी. एक दो बार आवाज़ लगाई. फिर किचन में जाकर देखा. टेबल पर एक खत पड़ा था. खोला और पढ़ा.
'हर्ष, मैं जा रही हूँ. आपके साथ रह कर हर बार अपना अपमान सुन कर थक चुकी हूँ. आप मेरे साथ रह कर भी मुझ में कोई खूबी ना देख पाये, महीने में दो बार आने वाले मनोज जी मुझे खूब समझ पाए. शायद मैं आपके लायक नहीं हूँ. या शायद आप मेरे. शायद. आप हमेशा कहते थे कि आपको मुझसे अच्छी बीवी मिल सकती है. आशा करती हूँ आपकी खोज सफल रहे. - नीरा'
घर की घंटी बार बार बजी. हर्ष धीरे धीरे चल कर दरवाज़ा खोलने गया. इमरान था. "कितनी देर लगा दी? 3  मिनट से बेल बज रहा हूँ. भाभी घर पर नहीं?"
हर्ष अवाक् सा ... खत इमरान के हाथ में थमा कर सोफे पर बैठ गया. इमरान ने खत पढ़ा. वह जाकर हर्ष के पास बैठा. अब कैसा कहता कि ... 

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