Thursday 5 May 2016

ख़त - 6

कोई किसी छोटे बच्चे के हाथ से उसका मनपसंद खिलौना छीन ले तो आप क्या करेंगे? और कुछ ना कर पाए तो क्या महसूस करेंगे? गुस्सा? लाचारीआकाश भी कुछ ऐसा ही महसूस कर रहा था.
नीचे नैना डाइनिंग रूम में टेबल पर से प्लेटें उठा रही थी और सब बर्तन सिंक में डाल कर धोने की तैयारी कर रही थी. एक प्लेट में अपने लिए खाना निकाला और ढँक दिया. किचन साफ़ हो जाने के बाद खा लेगी. मगर ना जाने क्यों आज जैसे उसके बाज़ुओं में से जान चली गयी हो ... और फिर जल्दी करे या धीरे से ... 'आलस' से ... करना उससे ही था ... जब इतना ...
"हेलो! नैना जी?"
दरवाज़े पर दस्तक के साथ सुनाई देनी वाली आवाज़ से नैना कुछ चौंक गयी. "अरे आकाश जी! आप सोये नहीं? कुछ चाहिए था?"
हाँ, आपके उदास चेहरे पर एक मुस्कान. "जी नहीं. मतलब जी हाँ, एक ग्लास पानी पीना था."
नैना ने एक ग्लास पानी भर दिया और आकाश को दिया पर वह उस ग्लास को सिर्फ हाथ में पकडे हुए था.
"आपने खाना खाया?"
"जी?"
"आपने खाना खाया या नहीं?"
"नहीं. पेहले किचन साफ़ कर लूँ. यहाँ कहाँ इंडिया की तरह कोई कामवाली मिलती है. खुद ही सेठानी और खुद ही नौकरानी. बाद में खा लुंगी".
"काम कहाँ भागा जा रहा है. सही वक़्त पर खाना खा लेना ज़रूरी है वरना तबियत बिगड़ती है. और देखिये ११:30 बज गए हैं."
"अरे कोई बात नहीं. मुझे आदत है ..."
मगर आकाश ने अपने ही होंठों पर ऊँगली रखी और इशारा किया 'श्श्!"
फिर मुस्कुरा कर कहा "चलिए आपकी यही ज़िद्द है तो यही सही. तो आप और मैं मिलकर किचन साफ़ कर लेते हैं."
"नहीं नहीं! आप क्यों करेंगे?"
"क्यूंकि आप मेरी बात नहीं मान रहीं."
नैना हल्का सा मुस्कुराई. अपनी प्लेट को माइक्रोवेव में रखा और खाना गरम किया. आकाश ने उसके लिए एक ग्लास पानी टेबल पर रखा. वह प्लेट लेकर बैठी ... मगर ... यह आखरी बार कब हुआ था कि किसीने उससे यूँ ज़बरदस्ती से ... इतना आग्रह करके उससे खाने को कहा था ... शादी से पहले शायद ... जब माँ ने उसके लिए पुरी-सब्ज़ी बनाई थी ... गरमा गरम परोस रही थी ... वह मना कर रही थी कि "बाद में खा लुंगी" ... पापा ने उसका हाथ पकड़ कर कहा था "चुपचाप अच्छी बच्ची बन जा और खाना खा ले! वरना मैं भी ठंडा खाना ही खाऊंगा" ... और वह पापा के साथ पुरी-सब्ज़ी खाने बैठ गई ... यह यादें इतनी ताज़ा हो गईं थी कि आँखों में चुभने लगी थी. नहीं, आँखों में तो आंसू चुभ रहे थे ... निवाला मुंह तक पहुंचा भी न था कि बाढ़ आ गई.
आकाश उन आंसुओं को पोंछता रहा. नैना भीगी आँखों से उससे देख रही थी. उसका हाथ हटाया ... और आकाश उससे ऐसे देख रहा था ... मानो किसी मरीज़ को देख रहा हो. "आप खाना खा लें. फिर जी भर रो लीजिएगा. में आपको नहीं रोकूंगा. प्लीज़ मत रोईए."
न जाने ऐसा क्यों होता है कि जब कोई हमें कहता है कि "मत रोईए" भावनाएं अपनी हाथों में आंसूओं की तलवार लिए बग़ावत पर उतर आती हैं. ऐसा ही कुछ नैना के साथ हुआ. वह सुबक सुबक कर रोने लगी. आकाश ने उसके हाथों से उसका निवाला ले लिए और पानी का ग्लास देते हुए कहा "थोड़ा पानी पी लीजिए प्लीज़". उसने एक दो घूंट पिए और ग्लास रख दिया. इस बार आकाश ने अपने हाथों से ही निवाला बनाया और नैना को खिलाया. पहले तो उसने मुंह खोलने से मना कर दिया. पर आकाश ने कहा "इतना स्वादिष्ट खाना बन है कि आप खिलानेवाले की उँगलियाँ भी खा जाएँगी." और इस बात पर भीगी आंखें, मंद मुस्कान के साथ नैना ने मुंह खोला. यूँही आकाश उसे खाना खिलाता गया और कुछ देर बाद नैना ने कहा "बस, अब नहीं. मैं ज़्यादा नहीं खाती". अब वह आकाश की आँखों में देख रही थी ... कई सवाल थे उसकी आँखों में ... और जवाब में उसके पास भी एक सवाल ही था "सब सो गए. आपको नींद नहीं आई?"
"मैंने आधे पेग से ज़्यादा नहीं पी है. और फिर जो देखा उसके बाद नींद आने से रही."
"ऐसा क्या देखा आपने?"



(to be continued ...)

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