Friday 20 May 2016

जिस दिन ... 2

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हर्ष के पापा की कॉटन मिल थी. अपने परिवार की हर सुख सुविधा का ख़याल रखने वाले वे एक अच्छे बेटे, अच्छे पति और एक अच्छे पिता थे. हर्ष अक्सर उनके साथ मिल और ऑफिस जाया करता. आखिर पढ़-लिख कर उससे ही तो सब कुछ संभालना था. एक दिन हर्ष के पापा का ड्राइवर उससे ऑफिस ले जा रहा था. वहां जाने से पहले उससे वकील की ऑफिस से कुछ ज़रूरी कागज़ात भी ले जाने थे. ड्राइवर ने गाड़ी पार्क की और चाबी को गाड़ी में ही छोड़ गया - जिस पर हर्ष की नज़र पड़ी. 15 साल की उम्र का जोश - हर नया कुछ आज़माने की उमंग ... जोश ही तो होता है, होश नहीं. हौसला कब बेवकूफी बन जाए - उम्र का यह मोड़ इस बात से अंजान होता है. हर्ष ड्राइवर की सीट में बैठ गया और गाड़ी स्टार्ट की. उसने संभलते संभलते गाड़ी चलाई और मेइन रोड पर ले गया. मगर बाकी गाड़ियों के साथ रफ़्तार बनाए रखने के चक्कर में एक्सेलरेटर पर कुछ ज़्यादा ही जम कर उसका पैर पड़ा ... और धड़ाम!
गाड़ी सीधे जा टकराई पार्क की हुई एक स्कूटर से. हर्ष हक्का-बक्का सा, सहमा सा गाड़ी में ही था. स्कूटर का मालिक वहां आ पहुँचा, कुछ लोग इकट्ठा हुए और ड्राइवर भी वहां आ पहुँचा. ड्राइवर ने तुरंत ही दरवाज़ा खोल कर हर्ष से कहा "आप बाहर आ जाइए". गाड़ी पर थोड़ी सी खराशें आई थी और स्कूटर को भी कुछ नुक्सान हुआ था. ड्राइवर ने बड़ी समझदारी से मामला संभाल लिया और स्कूटरवाले को यकीन दिलाया कि उनके मालिक स्कूटर की मरम्मत का सार खर्च उठाएंगे, बस वह रिपोर्ट न दर्ज कराए. स्कूटरवाला मान गया, बात दब गई. ड्राइवर गाड़ी लेकर ऑफिस गया और हर्ष के पापा को सारी घटना बयान कर दी. ड्राइवर के जाने के बाद, पापा की डाँट से बचने के लिए हर्ष ने अपने पापा से कहा "अनूप जी झूठ बोल रहे हैं. वह गाड़ी उनसे ही टकराई थी. मुझे डरा-धमका कर कहा कि अगर मैंने आपसे सच कहा तो मेरी खैर नहीं". पापा अपने बेटे को बखूबी जानते थे. उन्होंने सोचा 'अभी छोटा है. बड़ा होगा खुद कर समझ जाएगा कि झूठ बोलना खुद अपने पैर काटने बराबर है'.
अगले दिन जब हर्ष इमरान से मिला तो गाड़ी टकराने वाली सारी बात बताई. फ़र्क - दोस्त को सब सच बताया. दोस्त थोड़ी न डांटेगा. पर इमरान सच्चा दोस्त था. डांटा नहीं, पर समझाया "तुझे ऐसा नहीं करना चाहिए था. सोच अगर अनूप जी बात न संभालते और पुलिस आ जाती तो?"
"अरे! तो क्या? पापा संभाल लेते ना!"
"नहीं हर्ष. हमें हमेशा उन लोगों की कदर करनी चाहिए जो खुद के सिद्धांत को एक ओर रख कर हमारे लिए झूठ बोलते हैं, हमारी मदद करते हैं."
"अरे बहुत मिल जाएँगे ऐसे."

"नहीं हर्ष, जिस दिन उन्हें कोई और मिल गया जो उनकी कदर करता है तो वे हमारा साथ छोड़ देंगे. खैर, यह बता की आज का मैच कहाँ देखेंगे - तेरे घर या मेरे घर?"



(... to be continued)

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