Tuesday 10 May 2016

ख़त -10

"क्या?"
"मुझे डिवोर्स चाहिए. तलाक."
"पी मैंने थी पर लगता है तुम्हे चढ़ गयी! या रात को चुपके से तुमने दो तीन पेग मार लिए थे?"
"मैं मज़ाक नहीं कर रही."
"तो होशवाली कौनसी बात कर रही हो?"
"होश में आई हूँ इसलिए तो कह रही हूँ."
"ओह! कल के चांटे की वजह से? ऐसे तो कई चांटे खाये हैं तुमने. फिर एक चांटे का इतना असर? नफरत की वजह से ..."
"नफरत नहीं पराग. मोहब्बत. खुद से मोहब्बत! ज़िन्दगी से मोहब्बत! जीने की चाह से मोहब्बत!"
"देखो मुझे कोई स्टुपिड सा ड्रामा नहीं चाहिए. वरना कल जिस ज़ोर की पड़ी थी ..."
"हाथ उठा कर तो देखिये पराग! यहाँ के डॉमेस्टिक वॉयलेंस एक्ट के तहत आपको जेल न भिजवाया तो कहना. यहाँ सब पड़ोसी, हमारे डॉक्टर, रिश्तेदार सब वाकिफ़ है इस बात से कि आप मुझ पर हाथ उठाते हैं. उनमे से किसी एक की गवाही ही काफ़ी होगी. फिर मुझसे तो क्या, ध्रुव से मिलने के लिए भी कोर्ट की परमिशन लेनी पड़ेगी. रुक क्यों गए? हाथ उठाइए मिस्टर पराग दीक्षित!"
पराग को ऐसा लगा जैसे किसी ने उससे ज़ोर से मुक्का मारा हो. वह गुस्से में गाडी की चाबी ले कर बाहर चले गया. क्या हो गया था नैना को? कल रात का गुस्सा उतार रही होगी शायद. उसने रात को किसी पब में ही खाना खाया. देर रात घर लौटा तो देखा नैना टीवी देख रही थी. उसने ध्रुव को खाना खिलाकर सुला दिया था. पराग ने कोट उतारते हुए कहा "मैं खाना खा कर आया हूँ."
"मैंने आपसे पूछा?"
पराग इस बेरुखे जवाब से कुछ दंग सा रह गया. "एक काम करना. कल मैं काम पर जाऊं तो तुम डॉक्टर के पास जाकर अपने दिमाग की जांच करवा लेना."
इतना कह कर वह अपने कमरे में सोने चला गया.
अगले दिन नैना ध्रुव को साथ लेकर गई ... पर डॉक्टर के पास नहीं. वह सिटीजन्स एडवाइस ब्यूरो में गई. 
यह नागरिक सलाह केंद्र इंग्लैंड के हर शहर में होता है. यहाँ से आम लोगों को कानूनी सलाह और सहायता मुफ्त में दी जाती है. वहां से नैना ने डिवोर्स के लिए सारी ज़रूरी जानकारी - जैसे की कानूनी कार्यवाही, मार्गदर्शन - और एक अच्छे सॉलिसिटर (वकील) का नाम और नंबर भी ले आई. 
बस उसने फिर कभी मुड़ के पीछे नहीं देखा. ध्रुव पहले तो बौखलाया हुआ सा था, हैरान था पर उसने पराग के साथ इतना वक़्त ही नहीं बिताया था कि वह अपने पापा की कमी ज़्यादा महसूस करे ... और फिर आजकल उसकी मम्मी भी बहुत खुश रहने लगी थी ... हमेशा मुस्कुराती रहती थी ... ध्रुव के लिए यह काफ़ी था. पराग के एहम ने उससे नैना के पेटिशन को रोकना मुनासिब नहीं समझा. अगर वह ऐसा करता तो दुनिया यही कहेगी न कि पराग को नैना की ज़रुरत है, उसकी गरज है? वह नैना को दिखाना चाहता था कि उसके रहने या न रहने से कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता था. पराग का यह एहम नैना के लिए आशीर्वाद समान साबित हुआ - उससे एक साल में ही डिवोर्स मिल गया. 
नैना ध्रुव को लेकर इंडिया चली आई. उसके माँ-बाप को अफ़सोस तो हुआ कि उनकी बेटी का विवाहित जीवन सफल न रहा मगर साथ ही उन्हें यह ख़ुशी भी थी कि नैना ने हिम्मत करके अपने आपको उस नर्क से छुड़ा लिया था और सही सलामत उनके पास थी. जिस आदमी ने कभी भी अपनी बेटी पर हाथ न उठाया हो उससे कोई अपनी जागीर समझ कर मारे तो? पराग अब अगर नैना के पिता के सामने आता तो वे उससे चांटे मार मार कर मार ही डालते! नैना मुंबई के एक कॉलेज में लेक्चरर की नौकरी करती थी. ध्रुव भी एक अच्छी सी स्कूल में पढ़ता था और अपने नाना-नानी के प्रेम की छाँव में खिल रहा था. 
आकाश ने इंडिया में ही अपना व्यवसाय शुरू किया. मगर पैसों की ज़रुरत पढ़ी तो वह एक बड़ी कंपनी से आई नौकरी की ऑफर को ठुकरा न सका और बिज़नेस की ज़िम्मेदारी छोटे भाई को सौंप दी. यूँ तो वह बड़ा व्यस्त रहता पर फिर भी फेसबुक पर अपने जीवन की छोटी बड़ी बातें अपने लोगों के साथ बांटता रहता.
ज़िन्दगी की राह भी बड़ी अजीब है. हम भूल जाते हैं कि रौशनी हमारे अंदर होती है. बाहर का अँधेरा देख कर घबरा जाते हैं और इस घबराहट में उस रौशनी को भूल जाते हैं और हमें आगे राह दिखाई नहीं देती. अगर हम खुशनसीब होते हैं तो कोई हमें आकर याद दिला जाता है कि अपनी आँखें खोलो, अपनी ही चेतना से आगे रास्ता देखो ... या फिर जैसे हमारे अंदर ही दिया, बाती और तेल होता है ... हम खुद उस दीये को जलाना भूल जाते हैं. फिर कोई इंसान जीवन में एक दियासलाई बनकर आता है और हमारे मन के दीये को जला जाता है. आकाश भी नैना के जीवन में एक दियासलाई बनकर आया था. नैना को नयी राह भी दिखी और जीवन फिर से रोशन हो गया. उस एक रात ...
आज ... अभी ... यहाँ ... नैना अपने मन के उड़नखटोले के ज़रिये वापस लौट आई. उस अधूरे ख़त की तरफ. 


(... to be continued)

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