Saturday 21 May 2016

जिस दिन ... - 3

- 3 -

हर्ष अब अपने पापा की कॉटन मिल संभालता था. पढ़ाई तो पूरी हो चुकी थी पर वह तो उसके लिए एक औपचारिकता ही थी. उससे कहाँ औरों की तरह नौकरी करनी थी. अलबत्ता इस पढाई से यह फ़ायदा हुआ कि अब वह इस व्यवसायिक ज्ञान से अपने व्यापार को आगे बढ़ा सका और आधुनिकीकरण कर सका. साथ ही वह धन निवेश के लिए सस्ते दाम पर ज़मीन खरीदता और मुनाफा मिलने पर ज़मीन बेच देता. उसकी पहचान देसाई जी से हुई जो एक अनुभवी दलाल थे और जिन्होंने हर्ष के लिए एक से बढ़कर एक ऐसे सौदे तय किए थे.

देसाई जी की भी अपनी एक वजह थी कि वह हर्ष को इतने अच्छे सौदे दिलवाते - हर्ष सौदा करने में ज़्यादा समय बर्बाद नहीं करता और अपना निर्णय जल्द ही ले लेता. दूसरी वजह यह थी कि हर्ष चुकौती समय पर कर देता था. इन दो सालों में दोनों को एक दूसरे पर काफ़ी विश्वास बैठ गया था. और इसी विश्वास के चलते देसाई जी को हर्ष का नाम सुझा जब उनके पास एक बिल्डर का सौदा आया. इस बार वह खुद अपना पैसा निवेश करना चाहते थे. ज़मीन का वह टुकड़ा ऐसी जगह पर था जहाँ 4  साल में ही उसका भाव दुगने से ज़्यादा होने की संभावना थी. यह एक सुनहरा मौका था.19 लाख की रकम तो तैयार थी उनके पास मगर कहीं से भी बाकी 3 लाख रुपयों का बंदोबस्त नहीं कर पा रहे थे. औरों के लिए हज़ारों और लाखों का मुनाफा करवाने वाले देसाई जी अपने लिए भी कुछ अच्छी आशा लिए हर्ष की ऑफिस पहुँचे.
हर्ष अपनी मीटिंग खत्म करके ऑफिस में ही बैठा था और ... "आइए देसाई जी! कैसे हैं?"
"बस आप जैसों की दुआ और प्रभु की दया से सब कुशल मंगल है."
"कहिए, क्या लेंगे? चाय या ठंडा?"
"ठंडा ही मंगवा लीजिए. बाहर इतनी गर्मी है कि चाय पीने का मन ही नहीं करता."
हर्ष ने दो ग्लॉस शर्बत मंगवाए. "और सुनाइए. मार्केट बड़ा ठंडा है. कुछ है खरीदने को?"
"हाँ है. पर फिलहाल तो मैं खुद सोच रहा हूँ कि विकास प्रॉपर्टीज के नए प्रोजेक्ट में इन्वेस्ट करूँ. इस एक इन्वेस्टमेंट से मेरे निवृत जीवन में काफी आराम रहेगा. यूँ समझ लीजिए अच्छी खासी पूंजी जमा हो जाएगी. पर बस 3 लाख रूपये कम पड़ रहे हैं."
"कोई मुश्किल नहीं. आप बैंक से उधार ले लीजिए."
हर्ष के 'कोई मुश्किल नहीं' से देसाई जी की आशा जितनी बढ़ी थी वह उसके 'बैंक से उधार ले लीजिए' कहने पर कुछ डग नीचे आ गई.
"मैंने पहले से ही घर और गाड़ी के लिए उधार लिया हुआ है. नहीं, बैंक से लोन मुमकिन नहीं."
"ओह! तो अब क्या करेंगे?"
"मैं सोच रहा था कि अगर आप ही मुझे 3 लाख उधार दे देते. मैं व्याज के साथ आपको यह रकम १ साल में चूका दूंगा."
हर्ष सोच में पड़ गया - इस सोच में नहीं कि वह पैसे उधार दे या नहीं. मगर इस सोच में कि वह क्या बहाना दे कर मना करे. "देखिये देसाई जी, मेरे पापा और मम्मी सिंगापोर जाने वाले हैं, मेरी मौसी के यहाँ. अब रिटायर हो कर पहली बार जा रहे हैं तो खाली हाथ जायेंगे नहीं. टिकट, तोहफे और कई और खर्चे हो रहे हैं. इसलिए फिलहाल तो मेरे पास ३ लाख तो क्या, 50000 रूपये भी नहीं."
यह एक ऐसा सफ़ेद झूठ था जो देसाई जी जानते थे क्योंकि उन्होंने ने ही दो हफ्ते पहले एक सौदा करवाया था जिससे हर्ष को १० लाख का मुनाफा हुआ था. मगर वह यह भी समझ गए थे कि हर्ष उनकी मदद करना ही नहीं चाहता. शर्बत उनके गले से उतर नहीं रहा था ... गले में निराशा जो अटकी हुई थी. अब वहाँ बिना वजह बैठने का कोई फ़ायदा नहीं था. वे खड़े हुए और हर्ष से कहा "ठीक है फिर, तो मैं चलता हूँ."
हर्ष की निगाहें कंप्यूटर के स्क्रीन पर थी. उसने आँखें मिलाये बिना ही देसाई जी को कह दिया "ठीक है. फिर मिलेंगे."

देसाई जी बड़े मायूस होकर ऑफिस से निकले. रिश्तेदारों और दोस्तों से उधार ले कर उन्होंने १० लाख तो जमा किये थे मगर अब कोई ऐसा नहीं बचा था जिनसे वे पैसे मांग सके. औरों के लिए मुनाफा करवाने वाले देसाई जी ने आज अपने ही जीवन में निवेश और संबंध में घाटा महसूस किया. वह सौदा अब उनके हाथ से गया.

सालों से चल रही रोज़ की आदत - हर्ष और इमरान घर के बाहर पार्क पर मिले. इमरान घर में सिगरेट नहीं पीता था. और हर्ष को आदत थी रात के खाने के बाद पान खाने की. दोनों अपनी दिन दिनचर्या बता रहे थे. और हर्ष ने देसाई जी की बात कही. मगर इमरान की अभी भी वही राय थी "यह तुमने ठीक नहीं किया हर्ष. तुम्हारे लिए ३ लाख कौनसी बड़ी बात है. फिर ये तो सोचो उनकी वजह से अब तक तुम्हे शायद 80-90 लाख का मुनाफा हुआ होगा."
"अरे छोड़ न यार! आज 3  लाख मांगे, कल 5  और परसों 10 लाख मांगते. उनकी प्रॉब्लम है, मेरी नहीं."
"नहीं यार. हमें उन लोगों की कदर और मदद करनी चाहिए जो अपना नफा-नुक्सान देखे बिना हमारे लिए इतना कुछ करते हैं."
"अरे बाजार भरा पड़ा हुआ है देसाई जी जैसे दलालों से. वैसे भी मैं उनको वक़्त पर दलाली दे दिया करता हूँ."
"होंगे कई दलाल, पर देसाई जी जैसे नहीं. जिस दिन उन्हें कोई और कदर करने वाला मिल गया उस दिन वे हमारा साथ छोड़ देंगे. अच्छा यह बता इंदौर से उस लड़की के घरवालों का कुछ जवाब आया?"


(... to be continued)

No comments:

Post a Comment