Wednesday 4 May 2016

ख़त - 5

पराग के गुर्राए आवाज़ ने नैना को एक ही बेरहम पल में वापस लंडन में आ पटका. ध्रुव का माथे चूम कर, दरवाज़ा बंध कर वह नीचे की ओर भागी. पराग की आँखें गुस्से से लाल थी. या शायद ज़्यादा शराब पीने की वजह से लाल थी. या शायद ज़्यादा शराब पीने की वजह से वह गुस्से में था ...
"आहिस्ते से! ध्रुव सो रहा है. चिल्ला क्यों रहे हैं?"
पराग उसका हाथ खींचते हुए उससे किचन में ले गया.
"रोटियां अब तक नहीं बनी? मैं सब को बोल कर आया हूँ कि खाना तैयार है और तुम? आलसी कहीं की!"
"आप ने ही पिछली दफा कहा था कि अब की बार सब इक्कट्ठा हों तो एग कर्री और नान बनाना, रोटियां नहीं. और नान तो गरम ही परोस सकती हूँ ना? बाकी खाना तैयार है. आप कहें तब मैं नान बनाना शुरू करूँ."
"अपनी गलती के लिए मुझे दोष देती हो? खुद से ढंग का कोई काम नहीं होता. आधे अधूरे काम और ..."
"कौन सा काम ढंग से नहीं किया मैंने? क्यों मुझ में खामियां ढूँढ़ते रहते हैं? इतनी सी बात का ..."
"इतनी सो बात? ज़ुबान बहुत चलने लगी है आजकल!"
"काश ये शादी के पहले दिन से ही इतनी चलती."
"तुम्हारी इतनी जुर्रत? मुझसे ज़ुबान लड़ाती हो! मुझे शायद अभी ठीक से जान नहीं पाई तुम!"
"एक पत्थर-दिल इंसान हैं आप! घटिया सोच रखने ..."
पराग का हाथ इस रफ़्तार से नैना के गाल को छू गया कि उसके होंठ तक आये लफ्ज़ बिखर गए.
पराग सिटींग रूम में चला गया जहाँ सारे टीवी पर लॉटरी के नंबर का इंतज़ार कर रहे थे. प्रोग्राम में चल रहे शोर गुल की वजह से किचन में हुए ड्रामा के बारे में किसी ने नहीं सुना.
नैना की आँखों में आंसू तो भर आये थे पर अब वह बहते नहीं थे ... शायद जानते थे कि उन्हें कोई नहीं पोंछेगा कोई नहीं पूछेगा ... बाथरूम में जाकर अपना चेहरा धो लिया ... इससे गाल कम लाल नज़र आएंगे.
और नान बनाना शुरू किया. पांच मिनट बाद सिटींग रूम से पराग की आवाज़ आई "नैना डार्लिंग! खाना तैयार?" नैना वहां गयी और मुस्कुरा कर सब से बोली "चलिए खाना तैयार है." पराग खड़ा हुआ और बोला "चलो सब. आखिर मुहूर्त आ ही गया."
"वाह भाभी! आपके हाथों की बनी एग कर्री तो मैंने कहीं नहीं खायी. बहुत लज़ीज़ बनी है!"
"अरे तुझे ज़ोरो की भूख लगी है इसलिए तुझे ऐसा लग रहा है. यह तुझे सूखी रोटी देती तब भी तुझे वह रोटी भी लज़ीज़ लगती."
जावेद जैसे कुछ केहने जा रहा था की चुप हो गया. वह पराग की फितरत से वाकिफ था. वे और होंगे जो आग में घी डालते होंगे. जावेद ऐसा नहीं था. उसकी और मोहित की बीवियाँ तो ऐसी महफ़िल घर में रखने से साफ़ मना कर देती थी. एक नैना भाभी थी जो मुँह भी नहीं बिगाड़ती थीं और प्यार से खाना भी खिलाती थीं.
खाना-पीना हो गया और सब अपने अपने घर के लिए चल दिए. मगर बाहर तेज़ बारिश को देखते हुए सागर सोच में पड़ गया. आज वैसे भी उसने बहुत शराब पी थी. उस पर यह बारिश. अगर कोई एक्सीडेंट हो गया तो वहां के कानून के मुताबिक उसका तो ड्राइविंग लाइसेंस ही चला जायेगा. और टैक्सी भी नहीं कर सकता था. बिर्मिंघम लंडन से करीब २०० किलोमीटर दूर है. इतनी रात को कोच या ट्रैन ...
पराग ने उसके ख्यालों को रोकते हुए कहा "इतनी बारिश में कैसे जायेगा? और फिर आकाश के पास भी तो यहाँ का लाइसेंस नहीं."
"हाँ वही सोच रहा हूँ मैं."
"सोच मत. यहीं रुक जाओ. कल सुबह नाश्ता करके चले जाना."
"अरे नहीं! कैसी बात कर रहे हो?"
"अकल वाली बात कर रहा हूँ. देख हम में से किसी की इतनी हालत नहीं कि सीधा खड़ा तक रह सके. इसलिए नाटक मत कर. आकाश और तू ऊपर गेस्ट रूम में सो जाओ."
सागर के पास कोई और चारा भी नहीं था. उसके पैरों तले अब जैसे ज़मीन बहने लगी थी. वे तीनो ऊपर की तरफ गए ... पराग अपने रूम में ... सागर और आकाश गेस्ट रूम में जाकर खर्राटों वाली गहरी नींद सो गए ...
नहीं, आकाश नहीं. उसने जो सुना था, देखा था उससे उसके दिल में कोलाहल सा मचा था. 



(to be continued ...)

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