तुम रेत थे
सरक गए.
तुम पानी थे
बह गए.
तुम रंग थे
बिखर गए.
तुम आग थे
बुझ गए.
तुम पत्थर थे
टूट गए.
और
मैं धरा बन तुम्हें समेट लेती हूँ.
- शीतल सोनी
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