मेरा मन अब गहरा समंदर बन चूका है.
तुम अब किनारे पर ही रहना.
न कोई मोती, न ख़ज़ाने हैं दफ़न,
अरमानो के डूबे जहाज़ हैं सिर्फ़.
तुम अब किनारे पर ही रहना.
तिनके झूठे हैं सारे,
तुम तिनको का भी सहारा मत लेना.
तुम अब किनारे पर ही रहना.
किनारे पर बैठे बैठे
तुम्हे अगर लगता है कि
यह उछलती लहरें ही मेरा वजूद है...
तो जो तुम्हें ठीक लगे वह समझना.
मगर अब...
तुम किनारे पर ही रहना.
~ शीतल सोनी
No comments:
Post a Comment