Tuesday 26 October 2021

निर्णय


 
वह दोस्तों के साथ बस स्टैंड पर बैठा था. नहीं, किसी को लेने या छोड़ने के लिए नहीं. वहाँ से गुज़रती हर लड़की, हर औरत के कपड़े, बाल और चाल को देखने के लिए. फिर सब दोस्त मिल कर ज़ोर से टिप्पणी करते. कोई उन्हें टोकता या रोकता, संस्कार की दुहाई देता तो उसको गालियाँ देने लगते.

एक दिन, ऐसी ही हरकत करके वह घर आया. देखा तो पत्नी रो रही थी और उसकी माँ उसे चुप होने को कह रही थी. उसने हैरान हो कर पूछा "क्या हुआ? क्यों रो रही हो?"

पत्नी ने सिसकते हुए कहा "आज सब्ज़ी मंडी गई, वहाँ बैंगन खरीद रही थी. कुछ बदमाश लड़कों ने ऐसी गंदी टिप्पणी की … मुझे दोहराते हुए शर्म आती है. फिर मेरे कपड़ों के बारे में भी बोलने लगे. सर से पांव तक ढंकी हुए मैं न जाने उनको किस रूप में नज़र आई …" और वह रो पड़ी.

उसकी माँ ने बहु को अंदर ले जाते हुए कहा "अब यह सब ठीक कर देगा."

वह स्तब्ध रह गया. रात को सो न सका. करवटें बदल बदल कर अपने दिमाग में विचारों का मंथन करता रहा. सुबह होते होते उसने निर्णय ले लिया.

अगले दिन सुबह जब पत्नी ने चाय नाश्ता दिया तो वह बोला "आज से तुम बाज़ार या सब्ज़ी मंडी नहीं जाओगी. कुछ भी लाना हो मुझे कह देना, मैं लेता आऊंगा". पत्नी कुछ कहे उससे पहले वह घर से निकल दिया. काम से 5 बजे छूटने के बाद रोज़ की तरह बस स्टैंड पर गया. उसके दोस्त भी वही आ गए थे. फिर बस से उतरती हुई लाल कपड़ों वाली एक औरत को देख कर उसने कहा "हमें तो हरी मिर्च से ज़्यादा लाल मिर्च ही पसंद है!" और उसके सारे दोस्त ज़ोर से हसने लगे.

बहुत अच्छे



"मेरी आँखें कैसी हैं?"
-"बहुत अच्छी हैं."

"मेरी आवाज़ कैसी है?"
-"बहुत अच्छी है."

"मेरा अंदाज़ कैसा है?"
-"बहुत अच्छा है."

"मेरा दिल कैसा है?"
-"बहुत अच्छा है."

"मैं तुम्हें कैसा लगता हूँ?"
-"बहुत अच्छे लगते हो."

"तो फिर तुम मेरे साथ क्यों नहीं?"
-"तुम तो बहुत अच्छे हो,
क्या करूँ मगर
मेरी किस्मत बहुत बुरी है."


शीतल सोनी

रब ने कहा



नज़रों से तेरी मिला कर नज़रें
पूछा मैंने रब से
“यह हसीन चेहरा क्यों हर पल
मेरी निगाहों के सामने नहीं है?”

सीने से तुझे लगा कर अपने
पूछा मैंने रब से
“मेरा मुकद्दर क्यों इसकी
बाहों में नहीं है?”

हाथों को तेरे थाम कर
पूछा मैंने रब से
“क्यों इसका साथ मेरे
ज़िन्दगी की राह में नहीं है?”

रब ने तुझसे जुदा कर के कहा मुझे
“कैसे दे दूँ तुझे ...
यह तेरी क़िस्मत में नहीं है, सो नहीं है.”


Sheetal S

Friday 22 October 2021

अकेलापन






अकेला इंसान बड़ा मज़बूत होता है. लोग अक्सर अकेलेपन को मायूसी के साथ जोड़ते हैं मगर सच तो यह है कि जिस इंसान को अकेले रहने की आदत पड़ गई हो उसे अपनी खुशी या ग़म बांटने के लिए किसी की ज़रूरत नहीं होती. उदास हुए, रो लिए, खुद ही आँसू पोंछ लिए. किसी कामयाबी पर खुद ही की पीठ थपथपा लिए. पारिवार में या लोगों के बीच रहने वालों के मुकाबले अकेले इंसान को किसी से ज़्यादा अपेक्षा नहीं होती.

वह दोस्ती और साथ तो खूब निभाता है मगर किसी मोह में आसानी से नहीं बंधता कि "तुम नही थे तब भी जी रहा था, तुम नहीं रहोगे तब भी जी लूँगा". और ऐसा भी नहीं कि उनके दिल में सहानुभूति या संवेदनशीलता नहीं. वे दोस्ती तो बड़ी लाजवाब निभाते हैं.

सन्यासी संसार को त्याग कर हिमालय या वन में चले जाते हैं … उस अकेलेपन की ताकत पाने जिससे कुछ इंसान इस दुनिया में जीते हैं.


अकेलेपन में बड़ी ताकत होती है.



शीतल सोनी

सम्मान




वह एक कारखाने में काम करता था. रोज़ अख़बार पढ़ता. बहुत जानकारी मिलती रहती उसे और वह इस जानकारी के आधार पर कई धारणाएं बना लेता. सरकार कैसे चलनी चाहिए, दर्ज़ी को कपड़े कैसे सीने चाहिए, ट्रेन कैसे चलनी चाहिए … यहाँ तक कि चाय कैसे बनानी चाहिए … सारे विषय पर विचार घड़े हुए थे. यदि कोई तर्क वितर्क करता तो वो लड़ झगड़ लेता, डरा धमका देता.

समय बीतता गया … बच्चे बड़े हुए, कमाने लगे, उनके भी बच्चे हुए. नौकरी छोड़ दी. निवृति ले ली. सिर्फ नौकरी से.

एक साल उसके प्रांत में बाढ़ आई. गाँव तबाह हो गया. मगर मानव की प्रकृति है पुनःस्थापन करने की. अपनी क्षमता के अनुसार हर कोई इस पुनःनिर्माण में जुड़ गया. थवाई, मिस्त्री, बढ़ई काम करने लगे. वह हर किसी के पास जाकर उन्हें बताता कैसे काम करना चाहिए. गांव फिर से बस गया. पाठशाला खुली. वहाँ कार्यक्रम रखा गया जहां गाँव के पुनःनिर्माण करने वालों को सम्मानित किए जाना था.

वह भी गया. क्यों न जाए … गांव के बुज़ुर्गों में गिना जाता था. उसके पोते पोती मंच पर आए और अपने दादा के सम्मान में बोले "हमारे दादा का गाँव के पुनःनिर्माण में बहुत बड़ा योगदान है. उन्होंने सबको अपना अभिप्राय दिया और जो सहमत नहीं हुआ उनको बड़ा डराया धमकाया."


वह गर्वित हो कर मुस्कुराने लगा, फुले नहीं समाया.


~ शीतल सोनी

आठ ईंट

 




मधु १८ साल की थी जब उसकी शादी हो गई थी. ज़्यादा पढ़ लिख नहीं पाई थी कि क्योंकि गरिबी ने शिक्षा से पहले आमदनी का रास्ता दिखा दिया था. वह लोगों के घर बर्तन माँझती थी. शादी के तीन साल में दो बच्चे और पाँच साल बाद पति मर गया. रिश्तेदारों के पैसों की मदद चंद दिन ही चलनी होती है. बच्चों का भरण पोषण करने के लिए वह वापिस काम पर लग गई. फिर आई महामारी. लोगों ने उसको घर आने से मना कर दिया कि बीमारी ऐसे ही फैलती है. गरीब बीमारी से बाद में, भूख से पहले मरता है. एक इमारत बन रही थी वहां पर वह ईंट उठाने का काम करने लगी. सिर पर छः ईंटो के बोझ से अपने पेट का बोझ कम कर रही थी.

इमारत का मालिक एक दिन वहाँ आया. मधु ने हाथ जोड़ कर कहा "पैसे कुछ बढ़ाइए साहिब जी." मालिक ने कहा "छः की जगह आठ ईंट उठाया करो". वह जा कर गाड़ी में बैठ गया. उफ़ यह गर्मी. जेब से मोबाइल निकाला. देखा तो भारत की मीराबाई चनु ने ओलिपमिक में भारोत्तोलन के लिए रजत पदक जीता था. मालिक ने तुरंत ट्वीट किया "कांग्रचुलेशन्स मीराबाई! धिस इस रियल वुमन एम्पावरमेंट!"


~ शीतल सोनी





प्रेम नहीं ...



आप उनसे प्रेम करते हैं. आप उन्हें यह बात बताते हैं. वे आपको साफ मना कर देते हैं और कहते हैं कि उनके दिल में आपके लिए ऐसे कोई एहसास नहीं है.

आप फिर उनकी उलाहना करते हैं, अपने दोस्तों के साथ उनका मज़ाक उड़ाते हैं, उन्हें ज़लील करने का और सताने का कोई मौका नहीं छोड़ते. उन्हें कोसते रहते हैं.

तो बात दूं यह प्रेम नहीं, वासना है. क्योंकि अगर सचमुच में प्रेम होता तो आप उनकी इच्छा का मान रखते. और वे भी यह जानते थे इसलिए आपसे दूरी बना ली होगी. रहा सहा जो भी भाव था वह आपकी हरकतों से घृणा में बदल जाता है. फिर उनको दोष क्यों देना? जब कि आपका प्रेम प्रेम नहीं, वासना ही है.

हम अपने शब्द वापिस नहीं ले सकते.







हम अपने शब्द वापिस नहीं ले सकते.


कई अनुमान लगाते हैं. कई पूर्वधारणा बना लेते हैं. किसी की बातों में आ कर बहुत सारे अपशब्द बोल देते हैं उस व्यक्ति को. ओरों को भी उकसाते हैं. सत्य जाने बिना उस व्यक्ति को सब के सामने बदचलन, झूठा, धोखेबाज़ कह देते हैं. स्वयं को दूध का धुला बताने के चक्कर में उस पर कीचड़ उछालते हैं. या अपनी कोई खीज निकालने के लिए ही ऐसा करते हैं.


समय बीतता है. और एक दिन आपको पता चलता है कि उस व्यक्ति ने कभी आपके लिए कुछ नहीं कहा, बस आप ही गलत समझ बैठे. आपको जो दिखाया गया, जैसे भड़काया गया वैसे ही आप बहक गए. आपकी सारी धारणाएं झूठी और सारे अनुमान गलत निकले. मगर अब क्या करें? उन्हें अपशब्द बोलने का, उनकी निंदा करने का, उनका उपहास करने का जो कर्म आप कर चुके हैं उसका फल तो भुगतना ही होगा. इसलिए उचित यही रहेगा कि जब तक आपको किसी भी विषय के सारे पक्षो का पूर्ण ज्ञान न हो तब तक अपने अंदाज़े, अनुमान, अपने मत अपने तक ही सीमित रखें. क्योंकि …


हम अपने शब्द वापिस नहीं ले सकते.


~ शीतल सोनी

अलमारी या तिजोरी?



वह अक्सर अपनी बातें मुझसे कहता. काम में तरक्की हुई हो, घर पर कोई नई चीज़ खरीदी हो, कोई छोटी मोटी घटना हुई हो … सब बता दिया करता। मैं भी उसकी सारी बातें सुनती और अपने दिल के एक कोने में रख देती। बिल्कुल वैसे जैसे कोई अलमारी में चीज़ संभाल कर रख देता है।


और शायद हम सब किसी न किसी के लिए अलमारी ही हैं। कई बार यूँ भी होता है कि जिसने चीज़ रखी हो वह भूल गया हो पर हमें याद रहती है … क्योंकि हम उस चीज़, उस बात को संभाले हुए हैं। कुछ लोग ख़याल रखते हैं कि उनमें रखी हुई चीज़ को देखने का हक़ सिर्फ रखने वाले को होता है। हर किसी को बताया नहीं करते कि देख मुझ में किसने क्या रखा है। और कुछ लोग तो खैर खुली अलमारी से होते हैं … कोई अपनी बात बताता है और साथ में दूसरों की बातें देख लेता है।


और कुछ बहुत अज़ीज़ लोग होते हैं जो तिजोरी होते हैं। आप उनसे किसी ओर के बारे में कुछ जान ही नहीं सकते। बड़ी हिफाज़त से संभाल रखते हैं आपकी हर बात, हर चीज़।


तो, आप क्या हैं? अलमारी या तिजोरी?


शीतल सोनी

Thursday 21 October 2021

जाओ तुमसे बात ही नहीं करनी मुझे.






जाओ तुमसे बात ही नहीं करनी मुझे.
 
तुमसे बाते करूंगी. तुम भी बात करोगे. तुम्हें मेरी बातें अच्छी लगेगी. सब को अच्छी लगती है. फिर हम मिलेंगे. दोस्त बनेंगे. एक दूसरे का हाल पूछते रहेंगे. सुख दुःख बांटेंगे. रोज़मर्रा की बातें करेंगे, मौसम की बातें करेंगे, लोगों की बातें करेंगे, देश की बातें करेंगे, दिल की बातें करेंगे. फिर कुछ वक़्त बाद तुम्हें मेरा हाल पूछना, तबियत पूछनी … सब खटकने लगेगा. मैं फिर भी तुम्हारी ख़ैर खबर पूछती रहूंगी, खयाल रखूंगी. क्या करूँ? पुरानी आदत है मेरी और यह आदत जाती नहीं. फिर तुम गुस्से में मुझसे कहोगे "इतना क्यों पूछती रहती हो. चैन से जीने दो थोड़ा". मैं दंग रह जाऊंगी. कभी सोचा ही न था कि तुम्हारे चैन की दुश्मन बनूँगी. मैं तुमसे दूरी बना लुंगी. तुमसे बातें नहीं करूंगी. कुछ दिन तो तुम आराम महसूस करोगे. फिर तुम सोचोगे कि मैं बात क्यों नहीं कर रही तुमसे. १० - १५ दिन इंतेज़ार करोगे. फिर सामने से मुझे मेसेज करोगे "बड़े लोग! मेसेज करने का समय नहीं या इरादा नहीं?" मैं तुम्हारा मेसेज पढ़ कर सोच में पड़ जाऊंगी कि तुमने ही कहा था तुम्हें चैन से जीने दूँ. मेसेज करूँ तो तकलीफ, न करूँ तो भी तकलीफ. 

मुझे इस उलझन में नहीं पड़ना. इसलिए … जाओ तुमसे बात ही नहीं करनी मुझे.




~ शीतल सोनी

मौसी जी

 



वे मेरे पापा की मौसी थी. मगर हम बच्चे भी उन्हें मौसी ही बुलाते थे. ज़रा बातूनी थी और उनका सामान्य ज्ञान भी अच्छा भला था. कभी कभी किसी त्योहार पर, जन्म, विवाह व मरण प्रसंग पर अपने गाँव से आती. इस बार मरण प्रसंग था.

मौसी जी के एक रिश्तेदार दिल का दौरा पड़ने से चल बसे थे. नहीं, चल बसे नहीं. "प्रभु के चरणों" को पा गए थे. यह बात बड़े बुज़ुर्ग अक्सर कहते. वे मृतक के घर शोक मनाने गई. अंतिम क्रिया के पश्चात वे घर आई. पापा ने उनसे एक दिन रुक जाने को कहा. वे बोली "ना बेटा. मुकेश के बेटे की शादी है हफ्ते बाद. बहुत तैयारियां करनी है. सारी मिठाइयाँ मेरे बताए गए तरीके से बनेंगी."

माँ ने मौसी जी के लिए रोटी, आलू की सूखी सब्ज़ी, हरी चटनी और आचार एक डिब्बे में भर कर दिया क्योंकि उनका गांव दस घण्टे दूर था. बीच राह में कहीं खाने की व्यवस्था न हुई तो भी मुश्किल न हो. मौसी मेरी माँ से बोली "बेटा, कुछ सुपारी और सौंफ भी देना. और पास की दुकान से कुछ चिक्की मंगवा देना". माँ ने भाई से कहा और वह ले आया. हम भाई बहनों को मौसी के रवैये पर आश्चर्य हुआ. पापा उन्हें बस स्टैंड तक छोड़ आए.

जब पापा वापस घर आए तो भाई ने कहा "मौसी जी तो मानो पिकनिक के लिए आई हो. ऐसा लगा ही नहीं कि वे किसी के मरण का सोग मनाने आई हो."

पापा ने कहा "मैंने समझाया है न कि पूरी बात जाने बिना किसी के लिए कोई अभिप्राय मत बनाओ. रही बात मौसी की. उन्होंने शादी के दस साल बाद अपना पति खोया है, अपनी 4 साल की बेटी की मृत्यु देखी है. उन्होंने जश्न भी मनाए हैं और मातम भी. अपने जीवन में बहुत सारे जन्म व मरण देखे हैं और इन सब से इतना सीख लिया है जन्म और मरण रुकते नहीं, चलते रहेंगे. ज़रूरी यह है कि जीवन चलता रहे."