Friday 22 October 2021

सम्मान




वह एक कारखाने में काम करता था. रोज़ अख़बार पढ़ता. बहुत जानकारी मिलती रहती उसे और वह इस जानकारी के आधार पर कई धारणाएं बना लेता. सरकार कैसे चलनी चाहिए, दर्ज़ी को कपड़े कैसे सीने चाहिए, ट्रेन कैसे चलनी चाहिए … यहाँ तक कि चाय कैसे बनानी चाहिए … सारे विषय पर विचार घड़े हुए थे. यदि कोई तर्क वितर्क करता तो वो लड़ झगड़ लेता, डरा धमका देता.

समय बीतता गया … बच्चे बड़े हुए, कमाने लगे, उनके भी बच्चे हुए. नौकरी छोड़ दी. निवृति ले ली. सिर्फ नौकरी से.

एक साल उसके प्रांत में बाढ़ आई. गाँव तबाह हो गया. मगर मानव की प्रकृति है पुनःस्थापन करने की. अपनी क्षमता के अनुसार हर कोई इस पुनःनिर्माण में जुड़ गया. थवाई, मिस्त्री, बढ़ई काम करने लगे. वह हर किसी के पास जाकर उन्हें बताता कैसे काम करना चाहिए. गांव फिर से बस गया. पाठशाला खुली. वहाँ कार्यक्रम रखा गया जहां गाँव के पुनःनिर्माण करने वालों को सम्मानित किए जाना था.

वह भी गया. क्यों न जाए … गांव के बुज़ुर्गों में गिना जाता था. उसके पोते पोती मंच पर आए और अपने दादा के सम्मान में बोले "हमारे दादा का गाँव के पुनःनिर्माण में बहुत बड़ा योगदान है. उन्होंने सबको अपना अभिप्राय दिया और जो सहमत नहीं हुआ उनको बड़ा डराया धमकाया."


वह गर्वित हो कर मुस्कुराने लगा, फुले नहीं समाया.


~ शीतल सोनी

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