Saturday 10 September 2016

सुप्रीम कोर्ट - 4

अब पापा की ऑफिस के अलावा मेरा और दीदी का कमरा बाकी रह गया था. पापा तो खैर ऑफिस में ढूंढ ही रहे थे. दीदी और में अपने कमरे में गए. बेड पर देखा, ड्रॉवर में देखा. कबर्ड में देखा. "ईशा, तूने आज अपना मेथ्स का होमवर्क कर लिया?"
दीदी का यह सवाल बड़ा महत्वपूर्ण था. मुझे शब्दों से प्यार था, उनसे खेलना अच्छा लगता था. ड्रॉइंग करना, चित्र बनाना उन्हें रंगना पसंद था. पर मेथ्स से तो मेरा छत्तीस का आंकड़ा था. दीदी और संजू समझाते रहते की मेथ्स में नियमितता थी. मगर फिर भी मुझे एक आँख न भाता. भगवन भला करे उस इंसान का जिसने केल्क्युलेटर बनाया. मुझ जैसों के लिए एक वरदान यंत्र था. केल्क्युलेटर न होता तो मेरे मेथ्स का होमवर्क आधे घंटा की जगह एक घंटा चलता. फिर मुझे न खेलना का, न पैंटिंग का और न किताबें पढ़ने का पर्याप्त समय मिलता. अपनी मनपसंद शौक पुरे करने के लिए एक एक मिनट कीमती रहता है. हाँ, अब आप समझे दीदी का यह सवाल क्यों महत्वपूर्ण था. मैंने अपनी किताबों की शेल्फ में ढूँढा. केल्क्युलेटर वहां भी नहीं था.
"ईशा, ऐसा तो नहीं की भूल से तूने केल्क्युलेटर अपनी किताबों के साथ स्कूल बेग में रख दिया हो?"
"मैं ऐसा क्यों करुँगी?"
"देख तो ले". मगर यह कहते हुए दीदी खुद मेरी स्कूल बेग चेक करने लगी. और मेथ्स की किताबों के बीच वह छुपा रुस्तम मिला! हम दोनों इतने खुश हो गए!
"चल पापा को दे आते हैं!"
"रुक ईशा, पापा से क्या कहेंगे? कहाँ से मिला केल्क्युलेटर?"
मैं बर्फ सी जम गई. पापा ने मुझे मेथ्स के होमवर्क के लिए केल्क्युलेटर का उपयोग करने से सख्त मना किया हुआ था. पता नहीं उन्हें ऐसा लगता था कि प्रारंभिक मेथ्स के लिए कैलकुलेटर नहीं पर दिमाग का उपयोग करना चाहिए. दो महीने पहले उन्होंने मुझे केल्क्युलेटर द्वारा मेथ्स का होमवर्क करते देख लिया था. उनकी डांट याद आई और मैं रोने लगी.
"दीदी! पापा मुझे बहुत डांटेंगे! दीदी ... "
"रो मत. कुछ सोचते हैं. दीदी ने हलके से मेरे सर पर एक थपकी मारी. "सोचने दे". दो महीने पहले की डांट इस कदर कानो में गूंजने लगी थी की मैं सोच नहीं रही थी, मैं रो रही थी.

"ईशा, रो मत. देख मेरे पास एक मस्त आईडिया है!" 



( ... to be continued)

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