Thursday 8 September 2016

सुप्रीम कोर्ट - 2

पापा. मेरे प्यारे पापा. अपने सारे बच्चों को एक समान प्यार करने वाले और कभी भी पक्षपात न करने वाले मेरे पापा. हम भाई बहनों की लड़ाई जब भी होती, और बहुत होती थी, तब पापा इस तरीके से बात को सुलझा देते थे कि हम में से कोई यह नहीं कह पाता कि "पापा जब देखो तब तेरी ही तरफदारी करते हैं."  घर के सारे फैसलों पर भी उनकी मोहर लग जाती तो वह आखरी फैसला माना जाता. इन्ही न्याय-प्रिय पापा को हमने घर में सुप्रीम कोर्ट का दर्जा दे रखा था. जो बातें हाई कोर्ट से न सुलझ पाती (वे घर के कामों में व्यस्त जो रहती), वह सुप्रीम कोर्ट सुलझा देते.
पापा ने घर के एक कमरे में अपनी ऑफिस बनाई हुई थी. हम दोनों बहनें अपना केस लिए उनकी ऑफिस में गई. सबूत के तौर पर टूटा पेंसिल बॉक्स, दीदी द्वारा बिगाड़ी हुई मेरी ड्राइंग और कलर पेंसिल्स हाथ में थे.
"पापा, देखिये ईशा ने क्या किया! मुझसे पूछे बिना मेरी कलर पेंसिल्स भी ली और बॉक्स भी तोड़ दिया. चोर!"
"ना पापा, मम्मी ने कहा था कि मौसी ने हम दोनों को जो गिफ्ट्स दी है वह हम आपस में बाँट सकते हैं. बिना पूछे."
"झूठी! मम्मी ने ऐसा नहीं कहा था कि हम बिना पूछे एक दूसरे की चीज़ें ले सकते हैं."
"पापा, दीदी ने मेरी ड्राइंग खराब कर दी". मैं ज़ोर ज़बरदस्ती से अपनी आँखों में आंसू लाने की कोशिश कर रही थी. फिलहाल सिर्फ रोती हुई आवाज़ ही बना सकी.
"पापा, ईशा ने मेरा पेंसिल बॉक्स तोड़ दिया!"
"पापा मैंने जान बुझ कर नहीं तोडा. दीदी छीना-झपटी कर रही थी सो टूट गया. ड्रामा क्वीन!"
"तू झूठी! चोर!"
"पापा, पेंसिल बॉक्स गलती से टूटा मगर दीदी ने जानबूझ कर मेरी ड्राइंग ख़राब की. देखिये यह ब्लू लाइन्स कर दी." मेरी आवाज़ कुछ और ज़्यादा रोतली हो गई.
"पापा, ईशा हमेशा ऐसा करती है. उस दिन बिना पूछे मेरी रिबन ले ली".
"तेरी रिबन तो ज़मीन पर गिरी पड़ी थी. तेरी बाकी साड़ी चीज़ों कि तरह. तू कहाँ अपनी चीज़ें संभाल कर रखती है? आलसी!"
"मैं आलसी नहीं, तू चोर है!"
"तू झूठी है!"
"तू झूठी! तेरी सारी बातें झूठी!"
"तू आलसी ..."

"चुप! बिलकुल चुप! खबरदार दोनों में से किसी ने एक और शब्द भी बोला या आवाज़ निकाली तो!" सुप्रीम कोर्ट ने दहाड़ लगाई.


(... to be continued)

No comments:

Post a Comment