Saturday 10 June 2023

भरी बरसात बन कर मिल


 

भरी बरसात बन कर मिल.

तू मुझे यूँ बूंदों में मिलना छोड़ दे. 


उम्रभर के लिए मिल.

तू मुझे यूँ पलभर के लिए मिलना छोड़ दे.


कहानी बन कर मिल.

तू मुझे यूँ चंद लफ़्ज़ों में मिलना छोड़ दे.


एक पूरी रकम बन कर मिल.

तू मुझे यूँ किश्तों में मिलना छोड़ दे.


~ शीतल सोनी

तुम रेत थे



तुम रेत थे 

सरक गए. 


तुम पानी थे 

बह गए. 


तुम रंग थे 

बिखर गए. 


तुम आग थे 

बुझ गए. 


तुम पत्थर थे 

टूट गए. 


और 

मैं धरा बन तुम्हें समेट लेती हूँ. 


- शीतल सोनी

मैं भी होली मनाती हूँ.


मैं भी होली मनाती हूँ.


अपनी नीली कमीज़ मेरे घर पर भूल आए… मैं वह पहन लेती हूँ. तुम्हारे रंग में रंग जाती हूँ. तुमने जो पीले गुलाब दिए थे… उसका बिछोना बना कर उस पर सो जाती हूँ. तुमने मंदिर में तिलक लगाया था… उस कुमकुम भरे हाथों से मेरा हाथ छूते हो… मेरे मन में केसर घोल देते हो. तुम जब भी प्यार से देखते हो, गाल गुलाबी हो जाते हैं. प्यार से मेरे तन पर रंग बिरंगी निशानी छोड़ जाते हो. हाँ, मैं भी होली खेल लेती हूँ.

~ शीतल सोनी


बड़ी देर बाद समझ आया…

 


बड़ी देर बाद समझ आया… 

हम उनके लिए खास थे ही नहीं।


जो भी थे, सिर्फ़ हमारे थे… 

उनके दिल में हमारे लिए 

कोई एहसास थे ही नहीं। 


ग़लती उनकी भी नहीं. 

जो हमें पसंद आए

उन्हें हम पसंद आए… 

यह ज़रूरी तो नहीं।


जहाँ उन्हें हमारा वजूद

बार बार याद दिलाना पड़े

कैसे मोड़ पर आ गए रिश्ते…

मोहब्बत है, बीमारी तो नहीं।

~ शीतल सोनी


मैं तुम्हें सुनती रहूँगी



तुम यूँ ही बातें करते रहो

मैं तुम्हें सुनती रहूँगी.


अपनी हर खुशी, हर परेशानी, 

हर तमन्ना, हर उदासी 

बयान करते रहना…  

मैं तुम्हें सुनती रहूँगी.


तुम वक़्त न देखना, 

तुम जगह न देखना,

जब जी में आए कुछ

बेशक बता दिया करना…

मैं तुम्हें सुनती रहूँगी. 


तुम बहुत अच्छे हो.

किसी को तुमसे और

तुम्हें किसी से मोहब्बत हो जाए

मुझे बता देना…

मैं तुम्हें सुनती रहूँगी. 


न कभी तुम्हारी बातों को तोलूंगी

न कभी इनके मायने ढूंढूंगी

और अगर किसी दिन चुप भी हो जाओगे

तब भी… 

मैं तुम्हें सुनती रहूँगी.

~ शीतल सोनी



तुम अब किनारे पर ही रहना


 

मेरा मन अब गहरा समंदर बन चूका है.

तुम अब किनारे पर ही रहना. 


न कोई मोती, न ख़ज़ाने हैं दफ़न, 

अरमानो के डूबे जहाज़ हैं सिर्फ़.

तुम अब किनारे पर ही रहना. 


तिनके झूठे हैं सारे,

तुम तिनको का भी सहारा मत लेना. 

तुम अब किनारे पर ही रहना. 


किनारे पर बैठे बैठे 

तुम्हे अगर लगता है कि 

यह उछलती लहरें ही मेरा वजूद है... 

तो जो तुम्हें ठीक लगे वह समझना. 

मगर अब... 

तुम किनारे पर ही रहना. 

~ शीतल सोनी 


इतना करोगे?


वह प्याली चाय की... 

आधी पियो, 

आधी मेरे लिए छोड़ दोगे?


बड़ी हसीन मुस्कान है तुम्हारी... 

यूँही हँसते रहो,

एक बार सिर्फ़ मेरे लिए मुस्कुरा दोगे? 


यह वक़्त तुम्हारा... 

सब को देते हो,

एक पल मुझे दे दोगे? 


बहुत लम्बी है ज़िन्दगी की राह... 

पूरा सफर न सही 

दो कदम साथ चल दोगे? 


- शीतल सोनी 


नसीहत इतनी ही दो

नसीहत इतनी ही दो 

जिससे खुद पर अमल कर सको. 


इंतज़ार उतना ही करवाओ 

जितना खुद कर सको.


गुस्सा इतना ही करो 

कि बाद में नज़रे मिला सको. 


यूँ तो बेइंतेहा होती है मगर 

मोहब्बत भी उतनी ही करो 

कि आदत न बन जाओ. 

~ SheetalS


एक सिगरेट सुलगा ली


 

एक सिगरेट सुलगा ली. 


एक कश लिया. बचपन की यादें, घरवालों का अपनापन, दोस्तों के साथ खेलना, मटरगश्ती करना. अब कभी न लौटने वाले बचपन का वह कश धुएँ में उड़ा दिया. 


एक ओर कश लिया. उसकी धुंधली तस्वीर आँखों के सामने आई. उसका सजना संवरना, प्यार से मुस्कुराना, तारीफ़ सुन कर शरमाना, साथ निभाने के वादे करना और फिर किसी ओर की हो जाना. उस मोहब्बत का वह कश धुएँ में उड़ा दिया. 


तीसरा कश लिया. कुछ कर दिखाने का जोश, कुछ बड़ा हासिल करने की तमन्ना जो हकीकत की दुनिया रोंद गई, कुछ पाने की जो आग थी उस पर ठंडा पानी फ़ेंक गई. अपने हर सपने का कश धुएं में उड़ा दिया. 


चौथा कश लिया. कोशिशें तो जारी ही है मगर अब आनेवाले कल को लेकर कोई आस नहीं. पानी सी ज़िन्दगी है मगर अब जीने की कोई प्यास नहीं. आने वाले कल का कश धुएं में उड़ा दिया. 


सिगरेट सुलगती रही, एक एक अरमान धुआँ हो गया. कहने को वह ज़िंदा है, सिगरेट की तरह मगर अब उसका वजूद सुलग गया. 


~ शीतल सोनी


बिल्कुल खाली

आओ तुम्हें आज़ाद कर देती हूँ. दिल मेरा है तो इसमें तुम्हारी कोई भी चीज़ क्यों रखूं? तुम्हारी बातें, तुम्हारी आवाज़, तुम्हारी यादें ने भीड़ बना रखी है और इस भीड़ से अब मुझे घुटन होने लगी है. मैं अपने दिल को फिर से सजाना चाहती हूँ. जिस सामान की परवाह तुम्हें ही नहीं, उसे मैं कब तक संभालूं. 


सो आज अपने दिल से तुमसे जुड़ी हर चीज़  बाहर निकाल फेंकी है. और अब मैं रह गई हूँ खाली. बिल्कुल खाली.


Sheetal S


काफी है

किसी ने पुछा जीयोगे कैसे?

हमने कहा उनकी यादें ही काफी हैं. 


किसी ने पूछा सांसे कैसे चलती हैं?

हमने कहा दिल में उनका होना काफी है.


किसी ने पुछा रातों को नींद कैसे आती है?

हमने कहा उनका ख्वाब में आना ही काफी है.


फिर पूछते हैं की चैन से मरोगे कैसे?

हमने कहा...

उनके जीने की खबर ही काफी है.




- शीतल सोनी

सोचते हैं

 सोचते हैं...


जो पल तेरे साथ बिताए

उन पलों को खुद पर बिताए होते।


जितना खयाल तेरा रखा

खुद का भी उतना खयाल रखते।


जितना इंतेज़ार करवाया तूने

वह वक़्त कहीं ओर शादाब करते।


जिन लफ़्ज़ों से तुझे खत लिखा

उसे अपनी ही दास्तान बयान करते। 


मगर फिर शायद

हम ज़िन्दगी कुछ कम जीते। 


- शीतल सोनी

तो क्या बात हो!

 हमारे बुलाने पर चले आते हो

अच्छी बात है।

कभी बिन बुलाए चले आओ

तो क्या बात हो! 


आते ही घड़ी देखने लगते हो… 

कभी वक़्त को भूल जाओ

तो क्या बात हो! 


आते हो और बैठते हो दूर हमसे

कभी हमारे करीब बैठो 

तो क्या बात हो! 


हम रुकने को कहेंगे 

तो रुक जाओगे मगर

अपनी मर्ज़ी से रुक जाओ

तो क्या बात हो! 

~ शीतल सोनी


बात



पुराने गाने चल रहे थे। मुझे लगा वह सो गया। मैं धीरे से अपना हाथ उसकी गर्दन के नीचे से सरकने लगी तो उसने एकदम से मेरा हाथ पकड़ा और कहा "कहीं नहीं जाना।"


मैंने दूसरे हाथ से अपना मोबाईल दिखाते हुए कहा "रात के ११ बज रहे हैं। फिर मुझे घर जाने को ऑटो नहीं मिलेगी।"


"यह मुंबई है। आधी रात को भी ऑटो मिल जाएगी। कुछ देर ओर रुक जाओ।"


मैंने मुँह बनाते हुए कहा "जाने दो वरना तुमसे बात नहीं करूंगी।"


वह ज़ोर से हँसने लगा और बोला "यह तो बोलो ही मत। तुमसे दो मिनिट चुप नहीं बैठा जाता। दुनियाभर की ऊलजलूल बातें करोगी, बकवास करोगी, वाहियात जोक्स कहोगी। ना, तुम मुझसे कभी बात किए बिना रह ही नहीं सकती।" 


इस बात को ७ महीने हुए हैं। उससे बात न किए ४ महीने हो गए हैं।


~ शीतल सोनी


उठा पत्थर और मार उसे

 उठा पत्थर और मार उसे

कि सब पत्थर मार रहे उसे। 


ज़ोर से हँस उस पर 

कि सभी तो हँस रहे उस पर। 


कुछ अपशब्द तू भी बोल 

कि सभी तो बोल रहे उसे। 


किस काम की विचारशक्ति 

किस काम की तर्कबुद्धि

जब उसका उपयोग करना नहीं? 

करना वह है जो कर रहे सभी। 



आप थोड़े से ढीठ बन जाओ

 आप थोड़े से ढीठ बन जाओ।


मेरी बात मानो

आप थोड़े से ढीठ बन जाओ।


लोगों के बदलते रवैये से

हैरान हो जाते हो, 

परेशान हो जाते हो…

उनको अब ओर तवज्जो मत दो।

आप थोड़े से ढीठ बन जाओ।


बहुत असर कर जाती है

उन लोगों की बातें कभी

जो आपके बारे में कुछ जानते नहीं

जिन्हें आपके बारे में कुछ पता नहीं। 

उनकी बातों को नज़रअंदाज़ कर लो।

आप थोड़े से ढीठ बन जाओ। 


मत रुको उनके लिए

जो आपके लिए रुकते नहीं।

मत सुनो उनकी

जो आपकी भी सुनते नहीं। 

आप परेशान हुए, अब उनको परेशान होने दो।

आप थोड़े से ढीठ बन जाओ।


एक फ़र्ज़ आपका

खुद अपने लिए भी है।

कोई क्यों फ़िक्र करेगा आपकी

जब आप खुद अपनी फ़िक्र करते नहीं।

थोड़े से मतलबी, थोड़े से बेपरवाह बन जाओ।

मेरी बात मानो

आप थोड़े से ढीठ बन जाओ।


एक कमरा था

 एक कमरा था. मैंने अपनी सारी पसंदीदा चीज़ें उसमें रखी थी… वह हर चीज़ जो मुझे खुशी देती थी और सुकून देती थी. मैं जब कभी उदास होती, उस कमरे में जा कर बैठ जाती. किसी ने मगर उस कमरे की चाबी चुरा ली है… शायद उस कमरे का हकदार. अब मुझे उस कमरे को भूलना होगा. 


वह कमरा तुम थे. 


~ शीतल सोनी


एक रस्सी थी

 



एक रस्सी थी. एक सिरा मेरे हाथ में और दूसरा उसके हाथ में था. हम रस्सी को पकड़ कर साथ साथ चलते. 


एक दिन उसे कहीं दूर जाना था. मेरा उसके साथ जाना मुमकिन भी न था और न मैं उसे दूर जाने देना चाहती थी. मैंने रस्सी को कस के पकड़ा. उसने मुझे समझाया कि मैं उसे जाने दूँ. नादान थी… मैंने सोचा अगर मैं रस्सी को कस के पकड़ूंगी और उसे खींच लुंगी तो वह दूर नहीं जा पाएगा. उसने ज़ोर से रस्सी खींच ली और चला गया. मेरे हाथ में खून भरे छाले रह गए. 


लोग कहते हैं वक़्त हर ज़ख्म भर देता है. इस किस्से को कई साल हो गए हैं मगर आज भी उन छालों से खून बहता है और मैं आज भी किसी भी रस्सी को छूने से डरती हूँ. 


कुछ रिश्ते उस रस्सी जैसे होते हैं. 

~ शीतल सोनी


हम भूल चुके हैं तुझे।

 


हम भूल चुके हैं तुझे। 


न तेरी वह आवाज़ याद है जो कानों में रस घोलती थी। न इस बदन पर तेरे प्यार के दस्तख़त याद है। जिनमें हम डूब जाया करते थे, तेरी वे आँखें याद नहीं। कभी लिखे थे तूने जो खत, न वह खत याद है, न उनमें लिखी हुई बातें याद है। 


न तेरा एहसास, न तेरी मोहब्बत, न तेरा वजूद, न तेरी मुस्कान, न तेरा गुस्सा, न तेरी रंजिश… हमें अब कुछ भी याद नहीं। 


याद है तो बस तुझसे यह दूरी। बाकी… हम भूल चुके हैं तुझे। 


~ शीतल सोनी


अब पीछे मुड़ कर मत देखना।

 आगे चल पड़े हो

अब पीछे मुड़ कर मत देखना। 


जो पहले कभी मेरे लिए थी ही नहीं

वह फ़िक्र अब मत जताना। 

अब पीछे मुड़ कर मत देखना। 


तुम आदत बन गए थे। 

अब आदत भुलाने की कोशिश कर रही। 

तुम इस कोशिश को मुश्किल मत करना। 

अब पीछे मुड़ कर मत देखना। 


वह एहसास, वह परवाह, 

साथ बिताया हुआ हर हसीन लम्हा… 

मुझे याद है, पर तुम भूल जाना।

अब पीछे मुड़ कर मत देखना। 


शायद मुझ में ही कोई कमी रही होगी।

शायद मेरी क़िस्मत ही खराब होगी। 

खैर, तुम्हारी खुशी के लिए हर पल दुआ करूँगी। 

बस… 

अब पीछे मुड़ कर मत देखना। 


~ शीतल सोनी


ज़रूर तूने ही ऐसा कुछ किया होगा ...

एक बच्चा था। शरीर से कमज़ोर था पर दिमाग से तेज़ था। अपनी पाठशाला और पड़ोस के बच्चों के साथ खेलता रहता। 

 

एक दिन क्रिकेट खेलते खेलते उसको किसी का धक्का लगा और वह गिर पड़ा। रोता हुआ अपनी माँ के पास गया। माँ से बेटे के आंसू न देखे गए। वह उन बच्चों के पास गई और जिस बच्चे ने धक्का मारा था, उसे चांटा मार आई। सब बच्चे डर गए। और अब इस बच्चे के दिमाग में यह बात बैठ गई कि जब कभी वह खुद लड़ नहीं पाएगा, अपनी माँ के पास जा कर रो देगा और उसका काम हो जाएगा। और यह कुछ महीनों तक चलता रहा। मगर फिर एक दिन… 


वह बच्चा दोस्तों के साथ क्रिकेट खेल रहा था और सब उसके साथ संभल कर खेल रहे थे। वह आउट हो गया। मगर वह ज़िद्द करने लगा कि वह आउट नहीं हुआ। पर कोई नहीं माना। वह रोता हुआ घर गया और बोला "देखो न माँ, मुझे कितनी बार मारते हैं, गालियां देते हैं"। 


माँ महँगाई की वजह से, बच्चे की नादानी की वजह से, तनाव के माहौल से बहुत परेशान थी। वह मुड़ कर बोली "ज़रूर तूने ही ऐसा कुछ किया होगा कि तुझे गालियाँ और मार पड़ी।"



~ शीतल सोनी