Monday 29 November 2021

जंगल का शेर

 


वह खूंखार था. बड़ी सूझ थी और सामने आए हर शत्रु को मार गिराना उसे आता था. 

जंगल के प्राणी उसकी सूझ से, उसकी वीरता से बहुत प्रभावित हो गए. क्यों न होते... जंगल में इतना कुशासन जो चल रहा था. हर कोई अपनी मनमानी कर रहा था. सारे प्राणियों को लगा कि वह खूंखार जंगली वृक ही इस कुशासन का अंत लाएगा. जंगल के अंधकारमय भविष्य को एक अच्छे उजाले की ओर ले जायेगा. सब वृक का प्रचार करने लग गए. उसकी वीरता की गाथा सुनाने लगे. बुद्धि से, बल से हर किसी को बताने लगे कि यही वृक श्रेष्ठ राजा बनेगा... जंगल का शेर बनेगा. 

जंगल में चुनाव हुए. वृक जीत गया. अपनी ज़िम्मेदारी को समझने लगा. मगर तब उसे यह भी एहसास हुआ कि राजनीति में सही को गलत और गलत को सही भी कहना पड़ता है. वह शासन करना तो जानता था मगर कहीं न कहीं राजनैतिक अपरिपक्वता दिखाई देनी लगी. राजतंत्र और प्रजातंत्र में, बलपूर्वक शासन करने में और सूझपूर्वक शासन करने में उसे अंतर समझ आने लगा. परंतु उसे अधिक चिंता तो अपने छवि की ही थी. उसके सहायक और कार्यकारी मंडल में जो दूरदर्शी थे उन्हें कहीं अनदेखा कर दिया गया. जंगल के प्राणियों को उसमें कोई बुराई न दिखती. वे चाहे सहमत न होते मगर यह कह देते कि यदि उनके "शेर" ने कुछ किया है तो सोच समझकर ही किया होगा. 

वृक अब समझने लगा था कि अपने अनुयायी को खुश करने से अधिक आवश्यक यह है कि उन्हें खुश रखा जाए जो उसके सिंहासन को डगमगा सकते हैं. जो पहले से ही प्रभावित है उनको क्या ही लुभाना. उसके इस बदले हुए रवैये से उसके अनुयायी अप्रसन्न होने लगे मगर करते भी क्या. उन्होंने ही खुद ज़ोरशोर से वृक के लिए प्रचार किया था तो अब किस मुँह से उसकी अवगणना या बुराई करते. उसकी आर्थिक नीतियों से भी परेशान थे. अपने "शेर" के इस बदले बर्ताव से उनके मन में सवाल उठने लगे. निष्ठा तो अभी भी वृक के लिए ही थी मगर अब सवाल पूछने आवश्यक थे. 

सो सारे अनुयायी प्राणी उसे मिलने गए और कहा "आप हमारे साथ यह अन्याय क्यों कर रहे हैं? हमने ही आपको इतना समर्थन दिया और आप हमारी इच्छाओं की ही उपेक्षा कर रहे? कितना मान दिया, कितना लडें सबसे आपके लिए मगर आपने तो हमारी ओर देखना भी ज़रूरी नहीं समझा? क्यों कर रहे हैं आप ऐसा? आपको अपना शेर माना है हमने और..."

वृक ने हाथ उठाया और उनको टोका "मैंने कहा था आपसे कि मुझे अपना शेर मानो?"




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