Monday 15 November 2021

राजकुमारी

 


आज आधा दिन ही था ऑफिस में. फिर दो दिन की छुट्टी. क्या करेगी, कहाँ जाएगी... शिखा यह सोच ही रही थी कि अभि ने उसको सिर पर हल्के से पेन मारते हुए कहा "क्या सोच रही हो मेडम?"

अपना लेपटॉप बंद करते हुए शिखा बोली "सोच रही हूँ क्या करुँगी इन दो दिनों की छुट्टी में. तुम्हारा क्या प्रोग्राम है? नेहा के साथ घूमने जा रहे हो कहीं?"

"ना. वह तो अपने गाँव गई है. कज़िन की शादी है."

"ओह!"

"मैं क्या सोच रहा था... तुम कल सुबह तैयार रहना... कुछ ११ बजे... मैं तुम्हें शहर घुमाऊंगा."

"कल? उम्म... मगर..."

"यह उम्म मगर सब छोडो. मैं तुम्हें ११ बजे पिक करूँगा और कोई भी टें टें की न तो किडनैप करके भी ले जाऊंगा!'

शिखा मुस्कुराई. "ठीक है बाबा." 

६ महीने हो गए थे उसे इस शहर में, इस ऑफिस में. अभि उसका सहकर्मी तो था ही, एक अच्छा दोस्त भी बन गया था. नेहा उसकी गर्लफ्रेंड थी, बड़ी अच्छी थी. 

दूसरे दिन अभि अपनी गाडी में आया और शिखा से कहा "चलो आज पहले तो शॉपिंग करते हैं." 

"शॉपिंग क्यों? मुझे तो कुछ नहीं खरीदना."

"पगली! चलो तो सही!" और वे दोनों मॉल गए. कपड़ों की दूकान में शिखा कुर्ती और ड्रेस देख रही थी. अभि ने एक केसरी रंग की कुर्ती दिखाई और कहा "यह पेहेन के देखो. तुम पर बहुत जचेगा यह रंग. जब देखो तब काले और डार्क कपडे पहनती हो. जिसके साथ शॉपिंग करती हो वह तुम्हे टोकते नहीं?" शिखा हलके से मुस्कुराई "मैंने हमेशा अकेले ही शॉपिंग की है." अभि सिर हिलाते बोला "तो अब मैं तुम्हें टोक रहा हूँ और बोल रहा हूँ कि जाओ यह केसरी कुर्ती ट्राई करो." शिखा ने ट्रायल रूम में जा कर वह कुर्ती पहनी. आईने को देख अजीब लग रहा था. बाहर आकर अभि को दिखाया. "बढ़िया! क्लासिक लग रही हो!" उसने वह कुर्ती खरीद ली. 

"चलिए देवी जी अब कुछ पेट पूजा हो जाए. मैं तुम्हे एक मस्त रेस्टोरेंट में ले जाता हूँ... इस शहर में आ कर वहां नहीं खाया तो क्या खाया!" दोनों उस मशहूर रेस्टोरेंट में गए और खाने के साथ बातचीत भी जारी रखी. बाहर आए तो अभि ने कहा "धुप बहुत है, चलो फिल्म देख आते हैं." शिखा कुछ सोचने लगी कि अभि ने एकदम से कहा "मेरी माँ! फिल्म अच्छी लगे तो देखना, न अच्छी लगे तो सो जाना. कम से कम सिनेमा हॉल की ठंडक में तो बैठेंगे."

फिल्म बड़ी अच्छी थी. कुछ सीन पर शिखा खुल के हंस रही थी. अभि उसे देख रहा था. थोड़ा सा ही सही मगर संजीदगी का, ग़म का उसका पर्दा गिर रहा था. फिल्म ख़तम होने पर शिखा एक बच्चे की उत्सकता से बोली "अब?" अभि ने कहा "यहाँ से कुछ दूर एक बार है. बड़ा अच्छा है. वहाँ चलते हैं. तुम पीती तो हो न?" शिखा ने झिझक कर कहा "सिर्फ वाइन।" अभि ने गंभीरता से कहा "शाही लोगों की शाही पसंद!" शिखा हंसने लगी. अभि ने कहा "पहले मैं तुम्हे यहाँ के एक बड़े मंदिर में ले जाता हूँ. सिद्धि विनायक. चलोगी?" दोनों मंदिर गए, फिर वहाँ से बार. शिखा ने दो ग्लास वाइन पीए और अभि ने अपने लिए व्हिस्की मंगवाई. शिखा अब खुल कर मज़ाक करने लगी, बात बात पर हँसे जा रही थी. "अबे लगता है तुम्हें चढ़ गई, चलो निकलते है वरना तुम्हें उठा कर घर ले जाने की ताकत नहीं मुझ में." शिखा फिर भी हँसे जा रही थी "पागल! मुझे नहीं चढ़ी. मैं बस खुश हूँ. वह क्या है न कि पहले कभी भी किसीने..." और वह एकदम से चुप हो गई. बात अचानक बदलते हुए बोली "अभि महाराज! अब हम कहाँ जाएंगे?" अभी मुस्कुराता हुआ बोला "चलो, मरीन ड्राइव!" 

दोनों मरीन ड्राइव गए. वहाँ बैठे, कुछ देर चले, चने खाए, चाय पी. शिखा समुंदर किनारे बैठे जीवन की फिलोसोफी पर बात करने लगी और खुद अपनी ही बात का मज़ाक भी उड़ाती रही. "तुम्हें पान पसंद है?", अभि ने पूछा. "जी हाँ बनारसी बाबू, हमका पान बहुताई पसंद है!" अभि ने उठते हुए कहा "आज के बाद कभी भी तुम्हें बार नहीं ले जाऊंगा! चलो उठो!" स्टेशन के करीब एक पानवाला था. अभि ने दो पान बनवाए. एक शिखा को दिया तो शिखा ने अपने पर्स में वह पान रखा. "अबे पान खाने के लिए लिया है!" "हाँ अभि, मगर मैं यहाँ खाऊँगी तो मेरे दांत और मुँह लाल हो जाएंगे न? और फिर मैं तो अपना टूथब्रश भी नहीं लाइ हूँ!" वह फिर से ज़ोर से हंसने लगी. अभि ने अपने सिर पर हाथ रखते हुए कहा "तो तुम्हें कौनसी किसी पार्टी में जाना है या किसी रिश्तेदार के घर जाना है? निकालो पान और खाओ!" शिखा मुस्कुराई और पान खाया. "बड़ा ही मज़ेदार है!" 

रात के ११ बजने को आ रहे थे. अभि ने कहा "चलो तुम्हें  घर छोड़ आता हूँ. नेहा १ बजे विडिओ कॉल करने वाली है." 

शिखा ने कहा "नहीं, तुमने आज बहुत कुछ किया मेरे लिए. अब घर मैं खुद चली जाउंगी."

"चुपचाप बैठो कार में! अपनी ज़िम्मेदारी पर तुम्हें ले आया हूँ, खुद ही छोड़ दूंगा!"

"ओके सर!" सलामी मारते हुए शिखा ने कहा और कार में बैठ गई. दोनों शिखा के घर पहुंचे. अभि कार से बाहर आया और शिखा को कुर्ती की बेग देते हुए बोला "कैसा रहा दिन?" शिखा की आँखें चमक रही थी. अभि को एकदम से गले लगाया और बोली "थैंक यु सो मच अभि! अब पता चला राजकुमारी बन कर कैसा लगता है! आज तक किसीने ऐसा … " और वह हँसते हँसते चुप हो गई. 

अभि ने उसकी बात पूरी करते हुए कहा "आज तक तुम्हें किसी ने राजकुमारी की तरह ट्रीट नहीं किया न. जानती हो क्यों? तुम खुद को राजकुमारी नहीं समझती तो दूसरों से यह उम्मीद क्यों रखती हो की वे तुम्हें राजकुमारी समझे?" 



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