Tuesday 7 December 2021

छोडो, हमें क्या?

 


उसने आँखें खोली. कुछ आवाज़ें थी. उसके हाथ पर एक ट्यूब लगी थी जो ड्रिप के साथ जुडी थी. कुछ पल बाद यह भी मेहसूस हुआ कि वह फर्श पर नहीं, पलंग पर थी. तब एक नर्स आई. पूछा "जाग गई? कैसी हो?" और जवाब का इंतज़ार किए बिना उसके मुँह में थर्मोमीटर रख दिया. "हम्म... अब बुखार कम है. डॉक्टर साहब दो घंटे बाद राउंड पर आएंगे." और नर्स चल दी. रानी नहीं जानती थी वह यहाँ कैसे पहुंची. मगर बेहोश होने से पहले की बातें याद थी. पेट में ज़ोरो का दर्द, उल्टियां. बुखार. और रोटी बनाते वक़्त गिर जाना.

दो घंटे बाद डॉक्टर आए और कहा "तुम्हें एक दिन ओर रखेंगे. दवाई ड्रिप द्वारा दी जा रही है. फिर तुम्हे कल दवाई की गोलियां देंगे. पूरा कोर्स ख़तम करना है. एक पावडर देंगे जिसे पानी में उबाल कर पीना है. और खाने में फिलहाल दाल चावल, खिचड़ी और फल खाना."

"डॉक्टर साहब, मुझे हुआ क्या है?"

"तुम्हें गैस्ट्रोऐंटरटाइटिस हुआ है. फ़ूड पोइज़निंग. तुमने शायद बासी खाना खाया होगा. पेट में इंफेक्शन हुआ. हमने एन्टिबायोटिक दी है. बहुत कमज़ोरी है शरीर में. देखो, डाइटिंग वगेरे के चक्कर में मत पड़ो. अच्छा पौष्टिक खाना खाया करो. फल, हरी सब्ज़ियां." और डॉक्टर दूसरे मरीज़ की तरफ गए.

रानी के मन में डॉक्टर की बात गूंज रही थी. बासी खाना खाया होगा. ताज़ा खाना खाया ही कब. सब के लिए शाम को ताज़ा खाना बनता और रानी को दोपहर का खाना मिलता. रात का खाना बच जाए तो दूसरे दिन उसे वही नाश्ते में खाना पड़ता.

कुछ घंटे बाद सब मरीज़ों के घरवाले उनसे मिलने आए. रानी को मिलने कोई नहीं आया. चलो अच्छा है. किटकिट और ताने तो नहीं सुनने पड़ेंगे. सब चले गए. नर्स खाना ले कर आई. दाल चावल. रानी ख़ुशी ख़ुशी से खाना खाने लगी. उसके करीब लगे बेड पर मरीज़ बड़बड़ाने लगा "कैसा खाना दिया है?" रात को नर्स ने फिर से थर्मोमीटर से चेक किया. रानी ने आँखें बंद की. सुकून, शांति. ठंडी फर्श पर नहीं, नरम गद्दे वाले पलंग पर थी. सो गई.

अगले दिन उठी, अब बेहतर लग रहा था. उसने अख़बार भी पढ़ा. ओह! यह सब होता है दुनिया में! शाम को उसके मामा आए और घर ले गए. घर पहुँचते ही मामी ने स्वागत किया "आ गई करमजली! दो दिन से महारानी हॉस्पिटल में थी और यहाँ घर का सारा काम मुझे और निशा को करना पड़ा! मुफ्तखोर कहीं की. अब चल रात का खाना बना और दोपहर के बर्तन रखे हैं वे धो ले." रानी काम तो करने लगी मगर बहुत कमज़ोरी महसूस कर रही थी. "दो दिन बेड पर क्या सोइ, तेरे तो बदन में मानो ज़ंग लग गया है."

रानी कुछ नहीं बोली. वह एक बात कहती तो सामने दस गालियाँ और सौ ताने सुनने मिलते. "६ साल की थी, अपने माँ बाप को तो खा गई, अब चुड़ैल हमारे घर आई. १० साल से बोझ बनी बैठी है. अच्छा होता उस दिन यह भी मर जाती."

दवाई लेकर वह वहीं ठंडे फर्श पर चटाई डाल कर लेट गई. अस्पताल में कितना आराम था. आँखें बंद करके वह मन ही मन अपने आप को पलंग पर ले गई.

सुबह सबके जागने से पहले जाग गई, पानी भरने लगी, नाश्ता बनाने लगी, जैसे जैसे सब उठेंगे वैसे उनके लिए नहाने का पानी गर्म करने लगी. मामा की बेटी, निशा को कॉलेज जाने में देर न हो जाए , कपडे इस्त्री कर दिए और मामा के बेटे रोहन के स्कुल का यूनिफार्म भी. फिर मामी की माताजी के लिए पूजा के फूल और कुंए से पानी ले आई कि भगवन को इसी पानी से नहलाया जाता है. फिर कपडे धोने, घर में झाड़ू पोछा, दोपहर का खाना, बर्तन, वगेरे ... इस एक हफ्ते में जीवन पहले सा हो गया. मगर शरीर अब भी कमज़ोर था. डॉक्टर का क्या है, बोल दिया आराम करना, ताज़ा भोजन करना. और इसी कमज़ोरी के चलते रानी जब कुंए से पानी भर रही थी, चक्कर आया, पैर फिसला, गिरी, माथे पर चोट आई. आँखें खुली तो अस्पताल में थी.

सिर बहुत भारी था, माथे पर पट्टियाँ भी थी और दर्द भी. नर्स आई, इस बार ब्लड प्रेशर चेक किया. "मुझे क्या हुआ?"

"सिर फट गया था तुम्हारा. ६ स्टीच आई हैं, स्टीच समझती हो न? टाँके. कमज़ोरी भी है, उठ कर चलने की कोशिश मत करना, कुछ चाहिए तो बेल बजाना."

फिर तीन दिन अस्पताल में. रोज़ सब के घरवाले खाना ले कर मिलने आते, सिवाय रानी के. सब मरीज़ अपने घरवालों से कहते थे "बस जल्दी डिस्चार्ज कर के घर भेज दें." मगर रानी खुश थी. हाँ कमज़ोरी थी, सिर में दर्द था, मगर आराम भी तो था. उसे डिस्चार्ज हो कर घर जाने में कोई जल्दी नहीं थी. अपने जीवन के बारे में सोचने लगी. कभी कोई नया कपड़ा नहीं पहना था, कभी किसी ने प्यार से बात नहीं की थी. लोग सड़क के कुत्ते को भी प्यार और दया दिखाते हैं मगर ... वह सोचते सोचते सो गई. बाहर खड़ी नर्स वार्ड बॉय से कह रही थी "अजीब है... इस लड़की को न घरवाले देखने आते हैं और न कोई पूछने. खयाल भी नहीं रखते क्या? अभी १० दिन पहले ही यहाँ से गई थी. अब ओर भी कमज़ोर है." वार्ड बॉय ने कहा "सौतेली बेटी होगी. छोडो, हमें क्या?"

तीन दिन बाद फिर मामा लेने आए, वही सब क्रम शुरू. अब वह पहले की तरह जल्दी जल्दी काम नहीं कर पाती थी. थक जाती थी. और उसकी थकान के साथ तानों की बौछार बढ़ गई. "बाहर जाकर दो पैसे कमाने पड़ते तो पता चलता." "तेरे मामा ही मुर्ख हैं जो तुझे हमारे घर ले आए, किसी अनाथ आश्रम में फ़ेंक आते तो अच्छा होता!" "हराम की हड्डियां हो गई है!" रानी ने सोचा घर से भाग जाए, मगर वह जाती कहाँ? उसे कभी भी मोहल्ले से बाहर नहीं जाने दिया था और किसी से बात भी नहीं करने दी थी.

और तब अस्पताल याद आया. न किचकिच, न ताने. बस शान्ति. मगर वह अस्पताल जाए तो कैसे? वहाँ तो सिर्फ़ वे लोग जा सकते हैं जो बीमार हो या जिन्हें गहरी चोट लगी हो. अगर उसे भी फिर से गहरी चोट लग जाए तो ... और तब मामी की माताजी की आवाज़ आई "कमिनी! पूजा के फूल क्या तेरा बाप लाएगा?" रानी ने स्टोव बंद किया और सामने बगीचे से फूल लेने गई. सड़क पार करने वाली थी तो एक बड़ी ट्रक को आते देखा. गहरी चोट. अस्पताल. शान्ति. वह मुस्कुराई. हलकी सी ही अगर टक्कर लग जाए तो ... आती हुई ट्रक के सामने कूद पड़ी. वह कमज़ोर हो गई थी. सामने तक भाग ही नहीं पाई.




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