Thursday 9 June 2016

क्या कहूं?


"अब हम अलग हो जाते हैं,
मैं आज के बाद तुमसे नहीं मिलना चाहता".
इतना कह कर दामन छोड़ दिया तुमने.
आज मुद्दत बाद इस मेहफ़िल में नज़र आये हो.
यह मेरे पैरों तले ज़मीन कहाँ चली गई?
मैं काँच के टुकड़ों पर हूँ खड़ी.

कुछ भी तो नहीं बदला तुम में
- हर बात, हर अंदाज़ वही है.
होठों पर ज़र्द सा दाग,
गाल पर बड़ा सा काला तिल,
बातें करते वक़्त हाथों से इशारे करते रहना ...
कुछ भी तो नहीं बदला तुम में
- हर बात, हर अंदाज़ वही है.
यह मेरी आँखों में तिनको जैसा क्या चुभने लगा है?

और फिर तुम्हारी नज़र मुझ पर पड़ी.
बात करूँ या न करूँ?’
- उलझन तुम्हारे चेहरे पर झलक रही है.
पास आकर पूछ तो लिया
"कैसी हो?"
अरे पगले! इतना भी नहीं जानते?

मुर्दे बोल नहीं पाते.

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