Thursday 24 March 2016


मैं क्या जानूं सच का रंग है क्या
कि झूठ का हसीन सहारा है मुझे मिला.

कुछ आकाश जैसा नीला होगा सच?
या झूठ जैसा काला?

दुल्हन के कुमकुम सा लाल होगा सच?
या झूठ जैसा काला?

पेड़ कि पत्तियों जैसा हरा होगा सच?
या झूठ जैसा काला?

कंचन जैसा पीला होगा सच?
या झूठ जैसा काला?

तेरी आँखों के जैसा बदामी होगा सच?
या झूठ जैसा काला?

दबे होंठों सा गुलाबी होगा सच?
या झूठ जैसा काला?

क्यों सच का रंग हमेशा उभर है आता?
क्यों नहीं वह झूठ कि तरह घुल जाता?

मैं क्या जानूं सच का रंग है क्या
कि झूठ का हसीन सहारा है मुझे मिला.

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