Thursday 31 March 2016

एक बच्चा - 6

अगले दिन मानो जैसे मेरे और राघव के बीच कोई बात ही न हुई हो, वे नाश्ता करके, तैयार होके ऑफिस चल दिए। कोमल भी स्कूल गयी और जब दोपहर को वापस आई तो मुझे अपनी प्यारी सी आवाज़ में कहा "मम्मी, याद है न पापा ने कहा कि हम मंगल आर्ट्स सेंटर जायेंगे?" मैंने उसका माथा चूमते हुए कहा "हाँ गुड़िया, हम ज़रूर जायेंगे। पहले खाना खा लो, कुछ देर सो जाओ, फिर उठ कर होमवर्क कर लो। फिर हम ६ बजे जायेंगे।" और मेरी गुड़िया ख़ुशी ख़ुशी मेरा केहना मान गई।
शाम को जब हम माँ बेटी आर्ट्स सेंटर गए तो वहां कोमल की पेंटिंग टीचर से मुलाकात हुई। उसका रंगों के प्रति खिंचाव देख कर टीचर बहुत खुश हुई और उससे अपनी क्लास में ले गई। एक घंटे की क्लास थी और कोमल के साथ दूसरे छोटे बच्चे भी वहां थे। मैंने उससे इशारा किया कि मैं यहीं बाहर बैठी हूँ। रिसेप्शन में जाकर कोमल के लिए फॉर्म भरा और एक ओर फॉर्म माँगा - भरतनाट्यम के लिए। रिसेप्शन पर खड़ी लड़की ने कहा "मधु जी सिखाती हैं नृत्य, उनकी क्लास पहले माले पर है। एक बार उनसे बात कर लीजिए।"
मैं मधु जी की क्लास में गई। मधु जी अपनी स्टूडेंट्स से अभ्यास करवा रही थी। मैं उनके पास गयी ओर कहा "हेलो! मैं नृत्य सीखना चाहती हूँ।" आँखों में प्यार भरा आश्चर्य, होंठों पर सहज सी मुस्कान लिए उन्होंने पुछा  "आप सीखना चाहेंगी?"
"जी हाँ, मैं १३ साल की थी जब मेरा नृत्य छूट गया। मैंने ३ साल भरतनाट्यम सीखा है। अब बाकी जो छूट गया वह सीखना चाहती हूँ।"
मधु जी खड़ी हो गईं और कहा "मैं खुश हूँ जो आप इस विचार से आई हैं। अक्सर इससे बचपन का शौख समझ कर अधूरा छोड़ दिया जाता है। आप कल से जॉइन कर सकती हैं। नीचे जाकर फॉर्म भर लें।"
मुझे फिर से गुरु मिल गए। उनके पैर छुए और ज़मीन से अपनी झकद तोड़ती चली गयी। मैं फिर से उड़ रही थी। राघव क्या सोचेंगे? यह मैं क्यों सोचूं? मेरा बच्चा, मेरी महत्वकांक्षा, मेरा स्वप्न, मेरा जीवन और अनुमति किसी और की? मेरे बच्चे को पूरा हक़ है कि वह दूसरों के बच्चों की तरह बड़ा हो।
नीचे रिसेप्शनिस्ट को फॉर्म दिया और उसने अपने रजिस्टर में लिखने के लिए नाम पुछा "आपकी बच्ची का नाम?"
"कोमल सहनी"
"और आपका नाम?"
__________________________________________________________


1 comment: