रोती रही किस्मत को अपनी
उदासी की चादर ओढ़े बैठी रही।
सब केहते जीवन निरन्तर चलता रहता है।
उठ,
बाहर जा, कुछ बड़ा काम कर आ।
सो अपने दिल पर दर्द की धुल मिटाई
मैं आज बड़ा तीर मार आई।
निराशा भरी इन आँखों में
घना काजल लगा आई...
मैं आज बड़ा तीर मार आई।
जो कान किसी की मधुर आवाज़ सुनने को तरसे थे
उन कानो में बालियां लगा आई ...
मैं आज बड़ा तीर मार आई।
रूखे सूखे लब यह मेरे
इन पर लाली लगा लाई ...
मैं आज बड़ा तीर मार आई।
जिस माथे पर शिकन पड़ गयी थी
उस पर जगमगाती एक बिंदी लगा आई ...
मैं आज बड़ा तीर मार आई।
बिखरे उलझे बाल मेरे
इन्हे संवार के सजा के आई ...
मैं आज बड़ा तीर मार आई।
बेरंग से कपड़े जो पहन रखे थे
उन्हें उतार सतरंगी साड़ी पहन आई ...
मैं आज बड़ा तीर मार आई।
भीतर मन के घोर अँधेरा
मैं उस अँधेरे से बाहर निकल आई ...
मैं आज बड़ा तीर मार आई।
घर से निकल कर
आगे चौराहे पर गयी।
उम्र और हालात से झुकी एक बूढी औरत की मुस्कान देखी।
तिनका बार बार उड़ जाने पर फिर से तिनका जोड़ती एक चिड़िया
देखी।
विकलांग बच्चे को सड़क किनारे हसी ख़ुशी पढ़ते देखा।
गरीबी से लाचार एक बाप को मेहनत कर पसीना बहाते देखा।
कड़ी धूप में ईंट और पत्थर उठाते मज़दूर देखे।
जीवन का बोझ सघनता से उठाते हुए कई जीव देखे।
उन्हें देख कर अनुभूति हुई ...
मैं ख़ाक बड़ा तीर मार आई!
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