एक बच्चा
मैं
यूँ ही एकटक उन घुँघरू को देखती रही। पैरों पर बंध जाते, पैरों की थपाट से छमछम बज जाते। जैसे उन दोनो के बीच अपना
कोई रिश्ता हो। घुँघरू पैरों की थपाट और पैरों घुँघरू की छमछम एसे समझ जाते मानो
उन दोनो के बीच कोई संवाद चल रहा हो। मैं जानना चाहती थी कि आखिर वे क्या बातें
करते थे। सो उन घुँघरूओं को उठाया और पैरों पर बाँधने बैठी, मगर ...
"अरे किससे पूछ कर इनको हाथ लगाया?"
"जी, सॉरी! मैं सिर्फ इन्हे पेहेन कर इनकी छमछम सुन्ना चाहती थी।"
"छमछम? यह घुँघरू यूँही
नहीं पहने जाते! इन्हे बड़ी कड़ी नृत्य
तपस्या के बाद पहना जाता है। यह एक पुरस्कार समान है। नृत्य के प्रति घोर साधना के
बाद मिलने वाला पुरस्कार।"
वैशाली
जी ने मेरे हाथों से घुँघरू ले लिए पर मेरी आँखों मैं उभर आये आंसुओं ने मानो जैसे
उनका हाथ थाम लिया हो। सहज आवाज़ से पुछा "नृत्य सीखना चाहोगी?"
कोई
मीरा से पूछ ले क्या कृष्ण को पाना चाहोगी? कोई किसी कावड़िए से
पूछ ले क्या शिव को पाना चाहोगे? मैंने हाँ में सर
हिला दिया। वैशाली जी ने कहा "जाओ और अपने मम्मी
पापा से कहो मुझे आकर मिले। वैसे क्या उम्र होगी तुम्हारी?"
"मैं 10 साल की हूँ मैडम।"
"मैडम नहीं, दीदी कहो। अब जाओ और कल मम्मी पापा के साथ आना।"
खुश
तो इतनी थी कि जी चाहा उनके गले लग जाऊं पर उनके व्यक्तित्व को छूने की हिम्मत
नहीं हुई। तब मुझसे छोटी एक बच्ची आई, दीदी के पैर छुए और
बोली "मेरी मम्मी मुझे लेने आ गयी है दीदी। मैं
जाऊं?" दीदी ने उसके सर पर हाथ रखते हुए कहा "हाँ जाओ पर हस्त मुद्राएं याद कर लेना।"
मैं
भी खड़ी हो गई और उनके पैर छू कर कहा "मैं कल मम्मी पापा
के साथ आ जाउंगी दीदी।" उन्होंने मेरे सर पर हाथ रखते हुए कहा "शाम 5 बजे आ जाना। अब
जाओ।"
... (to be continued)
Very nice
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