मेरा "कुछ नहीं चाहिए" का जवाब सुनकर मेरी तरफ देख कर मम्मी बोली
"जा टेबल पर प्लेटें लगा दे। खाना तैयार है।"
हम सब ने खाना खा लिया, फिर मम्मी ने और मैंने बर्तन धो लिए, किचन साफ़ कर लिया। किशोर होमवर्क कर रहा था। नैना सुलेखा जी
और दिनकर सर के गुस्से का भुगतान करते हुए अपना होमवर्क तीसरी बार कर रही थी।
मम्मी पापा टीवी देख रहे थे। यह सही समय रहेगा।
मैं - "पापा। मम्मी। आप से एक बात कहनी है।"
पापा - "क्या हुआ? आज फिर कोई किताब खो कर आई?"
मम्मी - "उसकी बात सुन तो लीजिए।"
मैं - "मैं आज सरिता विहार गई थी। नीलम से अपनी किताब वापस लेने। उसके घर
के करीब वैशाली दीदी की डांस क्लास है। नृत्यशाला। वे भरतनाट्यम सिखाती हैं। मुझे
भी सीखना है। मैं सीखूं?"
पापा मम्मी एक दूसरे की तरफ फिर मेरी तरफ देखने लगे।
मैं - "वैशाली दीदी बड़ा अच्छा नृत्य सिखाती हैं। वे बड़ी अच्छी हैं।"
पापा - "तुझे कैसे पता चला कि वे अच्छा नृत्य सिखाती हैं?
तुम नाचने के बारे मैं क्या जानती हो?"
मैं - " नाच मत कहिये पापा! नृत्य कहिये। नृत्य साधना है"।
ऐसा लगा वैशाली दीदी मेरे करीब खड़ी मुस्कुरा रही हैं।
मैं नृत्य के पक्ष में जो बोल रही थी।
पापा - "हाँ वही! नृत्य! क्या करेगी नृत्य सिख
कर? वे मुफ्त तो नहीं सिखाएंगी।"
माँ - "यहाँ वहां खेलने कूदने से तो अच्छा है कि
यह नृत्य सिख ले। मन में एक एकाग्रता आती है। और फिर इसकी पढाई की भी तो कोई चिंता
नहीं है। हमेशा अच्छे अंक ही तो लाती है।"
पापा - "बस तुम यूँही बिगाड़ो बच्चों को। आज
किशोर के पराक्रम की कथा सुनी?"
और किशोर के पराक्रमों की कथा कुछ १० मिनट तक चली।
मैं - "प्लीज़ पापा! प्लीज़! मैं इस दिवाली और
अपने जन्मदिन का कोई तोहफा नहीं मांगूंगी। बस मुझे नृत्य सीखने की अनुमति दे
दीजिये।"
पापा - "सोच कर बताऊंगा। अब जा कर सो जाओ।"
मम्मी ने मेरी तरफ देखा, मानो जैसे कह रही हो - तू सजा, चिंता मत कर।
पापा की बात सुनकर अगर मन बुझ जाता तो मम्मी को देखकर
फिर से आशा का दीप जल उठता। मैं सोने गई और राम जी ... सॉरी ... श्री रामचन्द्र जी
से विनती की कि वे मेरे पापा की सोच की दिशा मेरी ख़ुशी की राह पर मोड़ दे।
श्री रामचन्द्र जी बहुत अच्छे हैं। उन्होंने ठीक वैसा
ही किया। सुबह दूध पीते समय मेरी आँखों मैं जैसे दो प्रश्नचिन्ह लगे हों, जिनका जवाब देते हुए मम्मी ने कहा - "पापा ने कहा है
कि अगर फीस ज़्यादा न हो और अगर तेरी पढाई पर इसका असर न हो तो तू नृत्य सीख सकती
है।" मैं उठ कर मम्मी से लिपट गई और उनको चूम लिया। मेरी मम्मी ने मुझे चूमते
हुए कहा "पगली!" मम्मी के मुंह से "पगली" सुनना जैसे माँ
यशोदा कान्हा को "नटखट" कहे।
आनंद! और तब किशोर बोल उठा - "यह ठीक नहीं। मैंने भी तो नया बैट माँगा था।
मेरी तो कोई चीज़ नहीं आती। नैना को भी नया स्किप्पिंग रोप मिल गया। बस गधे कि तरह
पढता रहूं।" मम्मी ने उसका सर प्यार से चूमते हुए कहा - "बस अगले महीने
ही तो तेरा जन्मदिन है ना।"
यह सुनकर किशोर भी मेरी तरह ज़मीन से कुछ २ फ़ीट ऊपर
उड़ने लगा। हम छोटे बच्चे। छोटी छोटी चीज़ों में हमारी बड़ी बड़ी खुशियाँ। शाम 5 बजे मैं मम्मी के साथ वैशाली दीदी की नृत्यशाला में गई और
वहां उस शुभ समय से शुरू हुआ मेरे सपने साकार करने का पहला दिन।
... (to be continued)
... (to be continued)
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