मैं
उस नृत्यशाला से चल कर नहीं,
कुछ उड़ कर ही बाहर निकली। मैं भी नृत्य करुँगी! वह
श्रृंगार, वह
मुद्राएं, पैरों
की थपथप, घुंघरुओं
की झंकार! उफ्फ्फ! यूँही उड़ते उड़ते घर पहुंची और देखा नैना को डांट मिल रही है। लगता है आज फिर नैना की टीचर की शिकायत आई है। अरे! मैं तो आपको बताना
भूल ही गई - नैना मेरी छोटी बहन। ८
साल की है। पेड़ों पर चढ़ना हो या
किसी के घर की दीवार लांघनी हो - नैना के हाथ पाँव हर
हाल मैं मुझसे बेहतर चलते थे।
मैं
खड़ी रहती और नैना आम के पढ़ पर चढ़ कर फल तोड़ कर मेरी और फेंकती। हम दोनों ये आम कभी किशोर के साथ बांटते, कभी
नहीं। किशोर कौन? मेरा बड़ा भाई।
पापा
नैना को डांट रहे थे - "खेलने कूदने से
परीक्षा में अच्छे अंक नहीं आएंगे। और आज फिर तूने कंचन
को मारा? रोज़-रोज़ सुलेखा जी की शिकायतें आती रहती है।"
मैंने
कहा "सुलेखा जी तो हर वक़्त शिकायत ही करती रहती
हैं। वे पढ़ाती कब हैं?"
पापा
ने गुस्से से मेरी तरफ देख कर कहा "एक के हाथ-पाँव ज़्यादा
चलते हैं और दूसरी की ज़बान!"
घुँघरू! वैशाली दीदी! भरतनाट्यम! अचानक सब याद आया और अपना उल्लू सीधा रखने के चक्कर में
मैंने नैना को फिलहाल उसके हाल पर ही छोड़ दिया और किचन में चली आई। मम्मी पराठे बना रही थीं। प्यार से उनको पुछा "मैं पराठे बेल दूँ"?
मेरी तरफ देखे बिना उन्होंने कुछ ओर प्यार से मुझे पुछा "क्या चाहिए?"
मैं
अपनी मम्मी की इस बात पर हमेशा खुश हो जाती। वह एक जादूगर थी। उनके
पास ऐसी ख़ास आँखें थी जो हम तीन भाई-बहनो के मन के अंदर
झाँक कर देख लेती की हम किस बात की रंगोली बनाए हुए हैं। उनके पास ऐसे ख़ास कान थे जो हमारी आवाज़ सुनकर बता देते की
हम किस भाव से बात बता रहे हैं। उनके पास ऐसी ख़ास
ज़बान थी कि हम चाहे जितने भी उदास होते उनकी मरहम सी आवाज़ सुनकर खुश हो जाते। मेरी माँ सचमुच एक जादूगर हैं।
अगर
सुलेखा जी यह बात कहती तो शायद कुछ इस तरह कहती "मेरी माँ सचमुच एक जादूगरनी हैं।"
,,, (to be continued)
☺👌
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