Sunday 17 September 2017

बोलो हुआ क्या है?


आओ बैठो पास मेरे
बोलो, हुआ क्या है?

बातों की लड़ी
जो कभी ख़तम ही नहीं होती थी
मिज़ाज पर भी अपनी
खूब चलती थी.
आज मौन छा गया है,
बोलो, हुआ क्या है?

वह हंसना हँसाना
बेवजह रूठना, प्यार से मनाना
किसी अनदेखी अनसुनी ग़लतफहमी में
सब कुछ खो गया है,
बोलो, हुआ क्या है?

क्यों यह खिलखिलाता सा चेहरा मुरझाया सा है?
जिन आँखों में कल के सपने चमकते थे
उन पर आज मायूसी का पर्दा क्यों है?
माथे पर यह शिकन क्या है?
बोलो, हुआ क्या है?

तुम नासाज़, तनहा, नाराज़,
परिंदे से, मगर बेपरवाज़
न कोई शोर, न कोई आवाज़,
इंसान जैसे पुतला हो गया है,
बोलो, हुआ क्या है?

मैं तुम्हारे दर्द दूर तो नहीं कर सकुंगी,
बस तुम्हारे माथे पर हाथ सेहला लुंगी,
होंसला बढ़ने को तुम्हारे, दो लफ्ज़ बोल दूंगी.
शायद दिल को तुम्हारे, थोड़ा सा ही सही
मगर सुकून तो मिले.
ज़िन्दगी जीने में थोड़ी सी ही सही
राहत तो रहे.

आओ बैठो पास मेरे,
बोलो, आखिर हुआ क्या है?


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