रब ने कहा
नज़रों से तेरी मिला कर नज़रें
पूछा मैंने रब से
“यह हसीन चेहरा क्यों हर पल
मेरी निगाहों के सामने नहीं है?”
सीने से तुझे लगा कर अपने
पूछा मैंने रब से
“मेरा मुकद्दर क्यों इसकी
बाहों में नहीं है?”
हाथों को तेरे थाम कर
पूछा मैंने रब से
“क्यों इसका साथ मेरे
ज़िन्दगी की राह में नहीं है?”
रब ने तुझसे जुदा कर के कहा मुझे
“कैसे दे दूँ तुझे ...
यह तेरी क़िस्मत में नहीं है, सो नहीं है.”
Sheetal S
No comments:
Post a Comment