वह दोस्तों के साथ बस स्टैंड पर बैठा था. नहीं, किसी को लेने या छोड़ने के लिए नहीं. वहाँ से गुज़रती हर लड़की, हर औरत के कपड़े, बाल और चाल को देखने के लिए. फिर सब दोस्त मिल कर ज़ोर से टिप्पणी करते. कोई उन्हें टोकता या रोकता, संस्कार की दुहाई देता तो उसको गालियाँ देने लगते.
एक दिन, ऐसी ही हरकत करके वह घर आया. देखा तो पत्नी रो रही थी और उसकी माँ उसे चुप होने को कह रही थी. उसने हैरान हो कर पूछा "क्या हुआ? क्यों रो रही हो?"
पत्नी ने सिसकते हुए कहा "आज सब्ज़ी मंडी गई, वहाँ बैंगन खरीद रही थी. कुछ बदमाश लड़कों ने ऐसी गंदी टिप्पणी की … मुझे दोहराते हुए शर्म आती है. फिर मेरे कपड़ों के बारे में भी बोलने लगे. सर से पांव तक ढंकी हुए मैं न जाने उनको किस रूप में नज़र आई …" और वह रो पड़ी.
उसकी माँ ने बहु को अंदर ले जाते हुए कहा "अब यह सब ठीक कर देगा."
वह स्तब्ध रह गया. रात को सो न सका. करवटें बदल बदल कर अपने दिमाग में विचारों का मंथन करता रहा. सुबह होते होते उसने निर्णय ले लिया.
अगले दिन सुबह जब पत्नी ने चाय नाश्ता दिया तो वह बोला "आज से तुम बाज़ार या सब्ज़ी मंडी नहीं जाओगी. कुछ भी लाना हो मुझे कह देना, मैं लेता आऊंगा". पत्नी कुछ कहे उससे पहले वह घर से निकल दिया. काम से 5 बजे छूटने के बाद रोज़ की तरह बस स्टैंड पर गया. उसके दोस्त भी वही आ गए थे. फिर बस से उतरती हुई लाल कपड़ों वाली एक औरत को देख कर उसने कहा "हमें तो हरी मिर्च से ज़्यादा लाल मिर्च ही पसंद है!" और उसके सारे दोस्त ज़ोर से हसने लगे.