Monday 1 October 2018

वो शख़्स


वो तुम्हें मिलेगा तो कहीं ... जैसे मुझे मिला था किसी मेहरबान पल में. एक शहज़ादे सा जिसकी अमीरी उसकी बातों में थी ... और बातें भी क्या बेशकीमती थी. वो अपनी अदाओं की इस बादशाही को लुटाता रहता और मैं सब समेट लेती. 
उसे मिलो तो कहना मैं हर शख़्स में हूँ उसे ढूंढती ... उसका नूर, उसकी दिलकशी, उसका अंदाज़, उसकी जादूगरी ... मैं हर शख़्स में हूँ खोजती. और मायूस हो जाती हूँ, बेज़ार हो जाती हूँ कि खुदाया मेरे यार सा इस जहान में ओर कोई नहीं. अब तो आलम यह है कि लोगों से मिलना ही छोड़ दिया है. 
वो तुम्हें मिलेगा तो कहीं ... और जब मिले तो उसे कहना कि मैंने अंधेरे की आदत है डाल दी कि रोशन चिराग अब उसके जैसा मेरे लिए कोई ओर नहीं. 

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