Sunday 12 February 2017

'मैं ठीक हूँ'



सात बजने ही वाले थे. सब आते ही होंगे. मैंने एक बार फिर किचन में जाकर सारे खाने की तैयारी देख ली. जमुना को फिर से समझा दिया कि पहले क्या कुछ खाना गरम कर के परोसना रहेगा. मेरे साथ जमुना भी सुबह से तैयारियों में जुटी हुई थी. बहुत खुश थी वह मेरे लिए. उसकी 'दीदी' को अपनी कहानियों के लिए मिली हुई उपलब्धि और पुरुस्कार की ख़ुशी उसके चेहरे से छलक रही थी. फिर यह हम दोनों की बीच की ही बात थी कि आजकल मैं अपना हर नया लेख सबसे पहले अब उसे पढ़ कर सुनाती. कुछ उसकी समझ में आता और कभी तो वह कह देती "दीदी, कुछ ज़्यादा समझ नहीं आया पर पढ़ने में अच्छा लगा जो भी आपने सुनाया". वह साफ़ दिल की थी इसलिए शायद सिर्फ साफ़ शब्दों को ही समझती थी. उपमा और अलंकारो से अनजान थी.
दरवाज़े पर घंटी बजी और बस मेहमानों का सिलसिला शुरू हुआ ... कुछ दोस्त और कुछ करीब रिश्तेदार जिन्होंने हक़ से मुझसे मेरी ख़ुशी में शामिल होने का अनुरोध किया था. रिश्तेदारों में कुछ बड़े बुज़ुर्ग जिनका आशीर्वाद मेरे साथ था और दोस्तों में वे सब जिन्हें में वक़्त-बेवक़्त कॉल करके परेशान करती रहती. रात के २ बजे फ़ोन करके पूछती कि मुंबई में ऐसी कोई जगह है जैसी मैंने अपनी इस कहानी में लिखी है? तुम तो जयपुर से हो तो बताओ वहां क्या ऑटो-रिक्शा मीटर के हिसाब से चलती है? तुम दक्षिण भारत के शहर से हो तो बताओ वहां क्या लोग सचमुच चाय से ज़्यादा कॉफी पीते हैं? क्या करूँ? कहानी का खयाल भी बेवक़्त आता तो ज़ाहिर है मेरे कॉल भी बेवक़्त जाते. कॉल ख़तम होने के बाद अगर दोस्तों ने मुझे कोसा होगा तो मुझे नहीं पता पर मेरा कॉल हमेशा उठाया. शैतानों का नाम लिया और शैतान हाज़िर! रणवीर आया.
सारे मेहमान कुछ न कुछ भेंट और उपहार लाये थे पर रणवीर ने मुझसे कहा "मेरा गिफ्ट कहाँ है?"
मैंने हंस कर पुछा "क्यों? तुम्हारा जन्मदिन है या आखिर बोर्ड की परीक्षा में पास हो गए?"
"तुम जिस अंदाज़ से हम दोनों की बातों को अपनी कहानियों में शामिल करती हो, मुझे हर वक़्त कॉल करके परेशान करती हो उस हिसाब से मेरा भी हिस्सा बनता है तुम्हारे इन गिफ्ट में से".
"ठीक है रणवीर, तुम्हे बख्शीश में मैं अपनी कोई पुरानी पेन दे दूंगी."
और यूँही बाकी सारे दोस्तों और रिश्तेदारों के साथ हँसते, बातें करते हुए खाना भी परोसा गया. ख़ुशी के मौके पर वक़्त को जैसे पर लग जाते हैं और उड़ान तेज़ हो जाती है. ११ बज गए और एक एक करके सब अपने घर जाने लगे. सिवाय रणवीर. उसने मेरे और जमुना के साथ साफ़ सफाई में मदद की. काम ख़तम हो गया तो मैंने वाइन की एक बोतल खोली और हम दोनों के लिए दो ग्लास भरे.
"थैंक यू रणवीर. इस तरह मदद करने के लिए. अब इसके लिए अलग से कोई बख्शीश देनी पड़ेगी?"
"यह सब बातें छोडो. पहले यह बताओ क्या बात है? क्यों उदास हो?"
"नहीं रणवीर, मैं बिलकुल उदास नहीं. मुस्कुरा तो रही हूँ".
"मुझसे तो झूठ बोलो ही मत. तुम्हे आईने की तरह पढ़ लेता हूँ. अब बोलो क्या बात है?"
मेरी आँखें नम हो गई. "जिस माँ ने मेरी इस शोहरत और कामयाबी की दुआएं मांगी थी आज वह मेरी इस ख़ुशी में शामिल नहीं है. यह सब अधूरा सा लगता है. उन्हें मैं अपनी कहानियां सुनाया करती, वह मुझे अपना अभिप्राय देती, मेरी गलतियां बड़े प्यार से निकालती और जब कभी मेरा कोई लेख किसी बड़े अख़बार या मैगेज़ीन में छपता तो वह अड़ोस-पड़ोस में पेड़े बांटती और सबसे पहले मुझे पेड़ा खिलाकर मेरा मुँह मीठा करती. आज यह रोशनियां,यह अवार्ड, यह पार्टी, यह सारे तोहफे ... मेरी माँ के उस पेड़े की तुलना में कुछ भी नहीं है." और इसी के साथ नम आँखें में से आंसू बहने लगे.
रणवीर ने अपना रुमाल देते हुए कहा "अरे पगली, यह सोचा है तुम जब कभी यूँ रोती हो तो उनको कितना दुःख होता होगा. वे आज जिस दुनिया में है, यकीन मानो तुम्हारी यह सब कामयाबी देख कर कितनी खुश हो रही होगी. तुम्हे तो खुश होना चाहिए कि तुम तो उनकी मृत्यु के बाद भी उन्हें खुश रख सकती हो. हाँ, ऐसा करते हैं कि कल किसी अच्छे से हलवाई के यहाँ से पेड़े खरीदते हैं और अड़ोस-पड़ोस और किसी वृद्धाश्रम में बाँट देते हैं. तुम्हारी माँ भी ऐसा करती न?"
होठों पर अब मुस्कान की छोटी बेहेन आ गई. और फिर खयाल आया ... "रणवीर, तुम्हे कैसे पता कि मैं उदास हूँ? मैं तो सब के साथ हंसी मज़ाक कर रही थी."
"तुमने ही मुझे बताया".
"मैंने? नहीं तो."
"हाँ, तुमने. मैं जब कभी तुमसे पूछता हूँ कि कैसी हो तब तुम्हारा जवाब हमेशा कुछ उटपटांग ही रहता है ...'बहुत खूबसूरत हूँ', 'पढ़ीलिखी डायन हूँ', 'तुम सोच रहे हो उससे ज़्यादा पागल हूँ' ... मगर आजे पहली बार जब तुमने यह जवाब दिया कि 'मैं ठीक हूँ' ... बस मैं समझ गया कि तुम ठीक नहीं हो".


दोस्त!

2 comments:

  1. Mam ! Sheetal ! You write good both in English & Hindi . Hope to see you read my book on short stories : Journey from Guwahati to Machhiwara , now in 17 countries , 118 libraries India , 3 in USA

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