Wednesday 28 December 2016

आज



वो कभी भी मुझसे आँखें नहीं मिलाता था. मैंने कई बार बहाने से उसकी आँखों में देखना चाहा. समुन्दर सी गहरी उसकी आँखें अपनी लहरों में न जाने क्या छुपा रही थी. मैं वह अनदेखा सा एहसास ढूंढ रही थी जो मैं उससे महसूस कर रही थी. वो जब कभी बातें करता मेरी तरफ नहीं देखता. एक बार मैंने उससे झूठमूठ कहा "मेरी आँखों में कुछ चुभ रहा है. ज़रा देखो". उसने मेरी आँखों पर हलकी सी एक फूँक मारी और नज़रें हटा ली. मैं देख ही नहीं पाई उसकी आँखों में.

वो अपने काम, अपनी आशाएं और अपने परिवार की बातें करता रहता. मगर जब कभी भी उससे मेरे बारे में कुछ पूछती तो वह चुप हो जाता. फिर भी, उसके साथ वक़्त बिताना अच्छा लगता था. बातों में बात न थी, साथ में थी. उसे छेड़ती, वो गुस्सा करता, फिर उसे मनाती. भीड़ में भी जब कभी मिलते तो ऐसा लगता हम दोनों के अलावा वहां ओर कोई नहीं है. बातें तो बहुत होती पर बस वो नज़रें नहीं मिलाता था.

एक शाम हम यूँही समुन्दर किनारे मिले ... अपनी बातों में उलझे चले जा रहे थे कि अचानक मेरा पैर फिसला और मैं गिर गई. मुझे मोच तो नही आई इस फ़िक्र से उसने नीचे झुक कर मेरे पैर को छुआ और मेरी तरफ देखकर पुछा "तुम ठीक तो हो न? चोट तो नहीं आई?"

और तब मैंने उसकी आँखों में झाँक कर जो देखा ... मानो जैसे मेरा दिल ऊपर आसमान के तारों के बीच जा बैठा हो ... दिल में मौज इस कदर उठी कि समुन्दर की मौजे महज़ लहरों सी लगे. मगर फिर ख़याल भी आया ... क्यों वह मुझसे यह एहसास छुपा रहा था. हम दोनों के इस साथ का कोई भविष्य नहीं था, कोई कल नहीं था. इस रिश्ते को कोई अंजाम हासिल नहीं था. उसने फिर से मुझसे नज़रें हटा ली. और मैं जो देखना चाहती थी वो मैं देख चुकी.


बस हम दोनों वहीँ समुन्दर किनारे एक दूसरे के साथ बैठे रहे. कल का पता नहीं ... हम साथ बैठे अपना आज संवार रहे थे.

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