“मुँह फुलाए क्यों बैठी हो?”
“कुछ नहीं। और वैसे भी अगर कुछ हो तो तुम्हें क्या फ़र्क पड़ता है?”
“उफ्फ तुम्हारी नौटंकी! फ़र्क न पड़ता तो पूछता ही क्यों? देखो, बाद में भी बताओगी, अब भी बताओगी। अब ही बता दो।”
“क्या बताऊं? कि कैसे तुम सबको मेसेज कर सकते हो और मुझे नहीं? सब की बातें सुनने का वक़्त है, मेरे लिए वक़्त नहीं? सब की तारीफ कर सकते हो, मेरी नहीं? मुझे अपने आम दोस्त की तरह क्यों नहीं ट्रीट करते?”
“पगली! सबको मेसेज करता हूँ पर मिलने सिर्फ तुम्हे आता हूँ। सब की बातें सुनता हूँ पर अपनी बात सिर्फ़ तुमसे करता हूँ। सब की तारीफ ज़ुबानी करता हूँ, निहारता सिर्फ़ तुम्हें हूँ।”
वह हल्का सा मुस्कराई।
“तुम मेरे लिए खास हो। आम क्यों बनना चाहती हो?”
~ शीतल सोनी
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