Monday, 13 October 2025

तुम मेरे लिए खास हो

 



“मुँह फुलाए क्यों बैठी हो?”


“कुछ नहीं। और वैसे भी अगर कुछ हो तो तुम्हें क्या फ़र्क पड़ता है?”


“उफ्फ तुम्हारी नौटंकी! फ़र्क न पड़ता तो पूछता ही क्यों? देखो, बाद में भी बताओगी, अब भी बताओगी। अब ही बता दो।”


“क्या बताऊं? कि कैसे तुम सबको मेसेज कर सकते हो और मुझे नहीं? सब की बातें सुनने का वक़्त है, मेरे लिए वक़्त नहीं? सब की तारीफ कर सकते हो, मेरी नहीं? मुझे अपने आम दोस्त की तरह क्यों नहीं ट्रीट करते?” 


“पगली! सबको मेसेज करता हूँ पर मिलने सिर्फ तुम्हे आता हूँ। सब की बातें सुनता हूँ पर अपनी बात सिर्फ़ तुमसे करता हूँ। सब की तारीफ ज़ुबानी करता हूँ, निहारता सिर्फ़ तुम्हें हूँ।” 


वह हल्का सा मुस्कराई। 


“तुम मेरे लिए खास हो। आम क्यों बनना चाहती हो?”


~ शीतल सोनी




बोझ

 



“कुछ नहीं बदला। कुछ भी नहीं बदला।” सीमा तीन साल बाद वापिस गाँव आई। बस से उतर कर गांव में अपनी दादी के घर की ओर चलने लगी। बीच में मंदिर आया। अभी भी वैसा। फिर बरगद का पेड़ आया। वह भी पहले जैसा। और उसे शिवम् मिल गया। वह भी पहले जैसा। शिवम् ने उसको देखा, खुश हो कर उसकी तरफ बड़ा और रुक गया। शायद सीमा अब भी नाराज़ हो।

“बड़े दिनों बाद?”

“हां। पापा ने कहा दादीजी की तबियत ठीक नहीं। जा मिल आ। सो मैं आ गई। कैसे हो तुम? और घर में सब?”

“सब बढ़िया। रुचि की शादी हो गई, दीपू अब कॉलेज में है, शहर में। निकी की मंगनी हो गई, चार महीने बाद शादी। बाबूजी अभी भी चल नहीं पाते और मां ने विद्यालय में पढ़ाना छोड़ दिया है। आँखें कमज़ोर हो गई उनकी।”

सीमा उसे देख रही थी। प्रेम जितना पुराना उतना ही गहरा। यह अलग बात थी कि दोनों की दिशाएं अलग थी, साथ न चल पाए। अगर साथ होते तो…

“चलो, तुम्हे दादीजी के घर छोड़ आता हूं। लाओ तुम्हारा सामान।”

“न, मैं उठा लूंगी।

“पर यह तो भारी है।”

“फिर भी तुम्हारे बोझ से कम।”




~ शीतल सोनी


हेलो

 




भयंकर ताप और तेज़ धूप थी। और उससे भी तेज़ विनायक का गुस्सा। छोटे से गाँव में भर दोपहर में वह ठंडी पेप्सी ढूंढने निकला था। मगर गाँव के लोग दोपहर को दुकान बंद कर देते थे। उसने रेखा को समझाया था पर वह मानी ही नहीं।  


रेखा। चार साल दोनों एक साथ पढ़े थे। दोनों की दोस्ती एक हेलो से शुरू हुई थी। विनायक शांत स्वभाव का और रेखा गुस्सैल। कभी कभी तो लगता जैसे उसका बचपना गया ही नहीं। दोनों में बार बार झगड़ा होता और दोस्ती का अस्तित्व डगमगा जाता। फिर रेखा कॉल करती और “हेलो विनायक। सॉरी” कहती। विनायक गर्म तवे पर घी की तरह पिघल जाता और हेलो बोल देता। बोलना पड़ता। उससे रेखा से दोस्ती अच्छी लगती। और रेखा… 


विनायक की नज़र एक दुकान पर पड़ी। दुकानवाले से पूछा पेप्सी मिलेगी। उसने कहा चार बजे बाद आना। विनायक ने कहा “भाई, अभी दे दीजिए। सौ रुपए ले लीजिए”। दुकानवाले ने पेप्सी दी और विनायक का फोन बजा। रेखा थी। बोली “हेलो विनायक। सॉरी”। और विनायक बोला 


“जाओ तुमसे हेलो ही नहीं करना मुझे!”


असमंजस में हूँ।


असमंजस में हूँ। 

हैरान हूँ। 


पशु के मास का सेवन करने वालों का 

श्वान के लिए पशुप्रेम देख कर हैरान हूँ। 


गाय को धर्म का प्रतीक मानते हुए 

गौमांस पर विरोध करने वालों का 

कालभैरव के वाहन श्वान के लिए 

नफरत देख कर हैरान हूँ। 


जानवर बनकर 

स्त्री का बलात्कार करते हुए

विकृत लोगों को समाज में

स्वतंत्र घूमते देख कर हैरान हूँ। 


स्त्री जो अपने घर में 

बूढ़े बुज़ुर्ग का खयाल न रखे 

उसे श्वानप्रेम में आतुरित 

प्रदर्शन करते देख कर हैरान हूँ। 


समाज में यह दोगलापन देखकर… 

असमंजस में हूँ। 

हैरान हूँ। 


~ शीतल सोनी