उसने गुलाबी फूलों वाला लेटर पेड निकाला. आकाश को वह ऐसे
रंगीन कागज़ पर ही खत लिखा करती थी. बेरंग सफ़ेद कागज़ तो बेरंग से रिश्तों से जुड़े
रहने के लिए होते हैं. अपनी चाय का कप टेबल पर रखा और मोबाइल को साइलेंट मोड पर रख
दिया. उसके और आकाश के बीच कोई न आने पाये ... इन अंतरंग से पलों में कोई खलल न हो
... होठों पर मुस्कराहट और हाथ में कलम लिए उसने कागज़ पर लिखना शुरू किया ...
डियर आकाश, कैसे हो? घर पर सब कैसे हैं? तुम्हारा नया जॉब तो बड़ा एक्साइटिंग लग रहा है.
इसी बहाने अलग अलग शहरों की सैर हो जाया करेगी. फेसबुक पर तुम्हारे नए फ़ोटो देखे.
उफ़! अच्छा लगा जान कर की तुम अपने बालों को छोटे नहीं कटवाते. चेहरे पर वही सूरज
जैसा तेज ...
और वह रुक गई. आकाश का चेहरा याद आते ही वह एक अलग दुनिया, एक अलग वक़्त में चली जाती.
मन सचमुच हवा से भी तेज़ होता है. पल भर में हमें कहाँ से
कहाँ ले जाता है. आप चाहे बारिश में भीग रहे हो ... मन पल भर में आपको सूखे बंजर
रण में पहुंचा सकता है. आप चाहे महफ़िल में बैठे हो ... मन आपको किसी तन्हाई, एकांत भरे माहौल में खड़ा कर देता है. मन वक़्त की
हदों को भी पार कर जाता है ... समय के बंधन से परे है यह. बुढ़ापे में जवानी और
जवानी में बचपन तक ले जाता है. पल हो, दिन हो, महीने हो या साल ...
मन कहीं भी चला जाता है. नैना का मन उससे तीन साल पीछे ले गया. एक अलग शहर ले गया.
जहाँ वह श्रीमती नैना दीक्षित थी. लंडन में रहने वाले पराग दीक्षित की पत्नी.
(to be continued ...)
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ReplyDeleteThe suspense..
ReplyDelete:D koi crime thriller nahi :P
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