Saturday 27 October 2018

झूठ सिर्फ अल्फ़ाज़ से नहीं बोले जाते



बहुत मुस्कुराते हैं वो, जब भी उदास है होते ... 
झूठ सिर्फ अल्फ़ाज़ से नहीं बोले जाते. 


दिल में तमन्ना किसी ओर की रखते हैं, 
किसी ओर को हैं गले लगाते ... 
झूठ सिर्फ अल्फ़ाज़ से नहीं बोले जाते. 

जेब भरी होती है सिक्कों से 
मदद की गुहार को मगर खाली हाथ हैं दिखाते ...
झूठ सिर्फ अल्फ़ाज़ से नहीं बोले जाते. 

हाथ मिलाते हैं हमसे वो बड़ी मोहब्बत से
आस्तीन में अपनी मगर खंजर छुपाए ... 
झूठ सिर्फ अल्फ़ाज़ से नहीं बोले जाते.

करते हैं इबादत उस खुदा की
उसी के बंदों को फिर है मार गिराते ...
झूठ सिर्फ अल्फ़ाज़ से नहीं बोले जाते.

Monday 1 October 2018

वो शख़्स


वो तुम्हें मिलेगा तो कहीं ... जैसे मुझे मिला था किसी मेहरबान पल में. एक शहज़ादे सा जिसकी अमीरी उसकी बातों में थी ... और बातें भी क्या बेशकीमती थी. वो अपनी अदाओं की इस बादशाही को लुटाता रहता और मैं सब समेट लेती. 
उसे मिलो तो कहना मैं हर शख़्स में हूँ उसे ढूंढती ... उसका नूर, उसकी दिलकशी, उसका अंदाज़, उसकी जादूगरी ... मैं हर शख़्स में हूँ खोजती. और मायूस हो जाती हूँ, बेज़ार हो जाती हूँ कि खुदाया मेरे यार सा इस जहान में ओर कोई नहीं. अब तो आलम यह है कि लोगों से मिलना ही छोड़ दिया है. 
वो तुम्हें मिलेगा तो कहीं ... और जब मिले तो उसे कहना कि मैंने अंधेरे की आदत है डाल दी कि रोशन चिराग अब उसके जैसा मेरे लिए कोई ओर नहीं.