Monday 4 July 2016

अस्तु


कितनी भाग-दौड़ है. हर कोई अपने काम में
, अपने जीवन के स्पष्ट अस्पष्ट लक्ष्यों को पाने में व्यस्त है. बड़ी चहल-पहल है. बहुत सारे लोग हैं. काश कोई दो पल रुक जाता मेरे लिए. काश मैं किसी को रोक पाती. रुक जाए तो उनसे अपने दिल की बात कह सकूँ ... अपनी वेदना का चट्टान सा भार दिल पर पड़ा हुआ है उससे शायद कम कर सकूँ. ऐसा लग रहा है कि दिल अब यह भार उठा नहीं पा रहा है. गहरी चोट लगी है और खून उभर आया है पर बह नहीं पा रहा है और इसी कारण से जम गया है. यह जमा हुआ नीला सा खून दिल में बहुत चुभ रहा है. अगर किसी को दिल की दो बातें कह दूँ तो दिल में यह जमा हुआ नीला खून पारदर्शक पानी बनकर आँखों से बह जाए. मगर सब व्यस्त है. और जो व्यस्त नहीं हैं उन्हें मेरी बातें नहीं सुननी - "तुम तो हमेशा हंसाया करती हो तो हंसने हंसाने की बातें ही किया करो." मैं चुप ही रहती हूँ.

मैं समुंदर को देख रही हूँ.

कोई अगर भगवान् सा है इस जगत में तो उससे भी अपने दिल की बातें कहने की कोशिश करती हूँ. मगर वो जो भगवान् सा है मेरी बात अनसुनी सी कर देता है. इसलिए अब मैं चुप रहती हूँ.

मैं समुंदर के करीब जाती हूँ.

कभी कोई पास रुक भी जाता है तो कहता है "दो पल में जो कहना है कह दो". जीवन के अपने इस अथाह दर्द को दो पलों में कैसे कह दूँ? इसलिए मैं कुछ नहीं कहती. अब मैं चुप रहती हूँ.

मैं समुंदर के ओर करीब जाती हूँ.

ऐसा नहीं की कोई भी नहीं पूछता. कुछ अपने हैं जो अपनी व्यस्तता से समय निकाल कर पूछते हैं "क्या हुआ है तुझे?" मगर वे इस कदर मेरे अपने हैं कि उनको कुछ भी बताने से डर लगता है ... मेरे दिल के दर्द का भार उन्हें कैसे सौंप दूँ? इसलिए मैं कुछ नहीं कहती हूँ. अब मैं चुप रहती हूँ.

मैं समुंदर के तट पर खड़ी हूँ.

अब किससे कहूं? कैसे कहूं? कहूँगी तो वह तीक्ष्ण ज्वलनशील पीड़ा को बताते हुए उससे फिर से जीना पड़ेगा. नहीं ... अब और नहीं.

समुंदर में बड़ी बड़ी मौजें उठ रही हैं. मानो मुझे देख कर ख़ुशी से उछल रही हों. अतिथि संस्कार को निभाते हुए समुंदर का पानी मेरे पैरों को छू रहा है, उन्हें धो रहा है ... और जाने अनजाने में मेरा थोड़ा दर्द अपने साथ लेता जा रहा है. मैं अब थोड़ा सा हल्का महसूस कर रही हूँ. मुस्कुराते हुए अपनी दिल की बातों को, अपने दर्द को समुंदर के साथ बाँट रही हूँ. वह बड़ी धीरज से मेरी बातें सुने जा रहा है. और उससे मुझ पर दया आती है. मुझे अपने गले लगा लेता है. जानता है कि जो पारदर्शक पानी बहेगा वह उसके पानी में घुल जायेगा.

आह! अब हर जगह पानी ही पानी है ... सर के ऊपर से भी बह रहा है ... और मेरा दर्द दिल से बाहर निकलकर मेरे साथ समुंदर में बह गया.

6 comments:

  1. Superb saying
    Such a nice blog. Keep on

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  2. In today's world we often feel soo lonely. Such a superb write up
    Ronak

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    Ronak

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