पेड़ के
पत्ते हरे रखूं या लाल? पतझड़ या ... हाथों में हरे रंग की कलर पेंसिल लिए सोच रही
थी कि कागज़ पर बनाये हुए मेरे उस पेड़ को कौन सा रंग दूँ ... कि दीदी आ गई.
"मुझसे पूछे बिना मेरे कलर पेंसिल को छुआ कैसे?
चोर!" यह कह कर उसने मेरे हाथों से पेंसिल छीन ली.
"तुमने ही तो कहा था कि हम दोनों एक दूसरे की गिफ़्ट अदल-बदल
कर सकते हैं. मेरी नैलपोलिश तुम ले सकती हो और तुम्हारे कलर पेंसिल्स मैं!"
"मगर पूछ कर लेना चाहिए न."
"तो क्या हुआ? तुम भी मेरी नैलपोलिश मुझसे बिना पूछे ले सकती हो."
दरअसल यह ज़रा मुश्किल होगा दीदी के लिए. मैंने अपनी नैलपोलिश छुपा जो दी थी.
"मम्मी ने कहा है जो कुछ भी हम दोनों का है हमें आपस में बांटना है. न तेरा न
मेरा. और अपनी चीज़ इस्तेमाल करने के लिए क्यों पूछना?"
आठ साल की बच्ची की यह वकालत क़ाबिल-ए-तारीफ़ थी पर सामने
उसके उसकी बड़ी दीदी थी. जैसे सरकारी अफसर और बाबु अपने "बड़े'
होने का एहसास जताते रहते हैं वैसे ही दुनिया के सारे बड़े
भाई-बहन अपने बड़े होने का हक़ जताते रहते हैं. मानो कोई विशेष परीक्षा दे कर उन्हें
ये उपाधि प्राप्त हुई हो. सभी भाई बहन. सिवाय मैं.
"मौसी ने यह पेंसिल्स मुझे दी थी पगली!" यह कहते हुए
दीदी सारी पेंसिल्स इक्कठी करने लगी. मैं ज़रा सी रोने जैसी हो गई. मेरे पेड़ के
पत्ते और घर की छत अभी भी बेरंग जो थे. मैंने उससे कलर पेंसिल्स छीनने की कोशिश
की. बहनों की इस लड़ाई में पेंसिल बॉक्स को शहादत हासिल हुई. छीना-झपटी की वजह से
पेंसिल बॉक्स का एक भाग मेरे हाथ में और दूसरा भाग दीदी के हाथ में था. और मासूम
सी पेंसिल्स फर्श पर बिखरी पड़ी थी. ग्लानि भाव को आते अक्सर देर लगती है. गुस्सा
तो बिजली सा तेज़ पहले पहुँच जाता है. मेरे 'सॉरी' सोचने से भी पहले दीदी ने गुस्से में आकर मेरे बनाये हुए
चित्र पर नीले रंग की पेंसिल से लकीरें बना दी. माफ़ी मांगने का ख़याल आते आते रह
गया और मुझ पर खून सवार हो गया. मैंने दीदी को धक्का मारा. वह ज़रा सी ही पीछे पड़ी
मगर ऐसी आवाज़ें लगाई जैसे मैंने उससे गरम चिमटे से छुआ हो. "नौटंकी! मेरी
ड्राइंग खराब कर दी!"
"चोर! मेरी पेंसिल चुराती है!"
बस! अब
बात इस कदर आगे बढ़ चुकी थी की सीधे कोर्ट तक ही जानी थी. सो हम दो बहनें इन्साफ की
गुहार लिए हाई कोर्ट पहुंची. किचन में जाकर देखा, हाई कोर्ट वहां नहीं थीं. याद आया,
मंदिर जाने को कह रही थीं. अब?
दीदी के ख़याल में यह सवाल भी आया होगा क्योंकि वह भी मेरे
साथ सीधे सुप्रीम कोर्ट जा पहुँची.
... (to be continued)
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