सैंडविच जैसी खिड़की से बाहर देखा
आम जैसा सूरज चमक रहा था.
परदे बंद किए,
देर हो चली,
अब ऑफिस चलें.
निम्बू की कतली जैसे गाडी के पहिए
गाडी बेचारी ऑफिस तक न पहुँच सकी,
बिगड़ गई.
कुकुरमुत्ता जैसा अपना छाता खोला
और ऑफिस की ओर चलना पड़ा.
स्ट्रॉबेरी जैसी लाल नाक हो गई मेरी ...
उफ़! यह सर्दी!
सोचा एक प्याली गरम चाय पी लूँ.
टपरीवाले ने मुस्कुराते हुए पुछा
"आधा कप लेंगी या पूरा?"
उसकी मुस्कान से मक्कई के दाने जैसे
उसके दांत झलक रहे थे.
चाय का खयाल छोड़ दिया
कुछ आगे चली.
भुट्टा जो खाना था.
भुट्टे वाले के ककड़ी जैसे हाथ ...
उनसे भुट्टे सेके जा रहा था.
मुझे दिया,
मैं आगे बढ़ी.
एक छोटी बच्ची पास आई.
जैतून जैसी उसकी आँखों में रस था.
नहीं रस नहीं ... शायद आंसू थे.
"भूख लगी है मेमसाब".
भुट्टा उसको ही दे दिया.
आगे बढ़ी,
पार्क की तरफ चली.
बच्चे पार्क में क्रिकेट खेल रहे थे ...
टमाटर सी क्रिकेट बॉल उनकी.
आलू जैसा एक आदमी दौड़े जा रहा था.
दौड़ते दौड़ते आलू शायद छोटा हो जाए.
बेंच पर बैठ गई ...
आज ऑफिस नहीं जाना.
बेंच पर आ बैठी एक औरत
गोद में नन्हा शिशु लिए.
मूंगफली के दानों जैसे
पदज उस शिशु के.
मैं मूंगफली खाने आगे चली.
काफी कुछ आगे चली ...
समुन्दर किनारे आ पहुंची.
मूंगफली वाली से कहा
"दस रूपये के शिशु पदज दो".
दो मिर्ची जैसे लाल होंठ उसके,
मुंह बनाते हुए बोली
"ठीक ठीक बोलिए न मेमसाब".
ठीक ठीक बोल कर
मूंगफली लिए मैं आगे चली.
सुबह का आम शाम होते ही
संतरा बन गया.
बेचारा पानी में डूब जायेगा ...
यह सोच कर उससे बचाने चली.
एक सेब जैसी औरत से टकरा गई.
"देख कर चलिए" कह कर
वह अनदेखा कर चली.
हाथों में मूंगफली,
सामने संतरा ओर
सेब आगे चला जा रहा था.
मैं समुन्दर की ओर बढ़ी.
तब वह आया,
मेरा हाथ पकड़ा
और कहा "चलो यहाँ से चलते हैं".
पहली बार इंसान जैसा इंसान ही दिखा.
हम दोनों हाथों में हाथ लिए आगे चले.
अलबत्ता संतरा तो डूब गया
मगर आकाश में
एक इडली छोड़ता गया.