Wednesday 4 March 2020

अब वक़्त नहीं

मीटिंग ख़त्म हुई. शशांक ने सोचा था वैसी नहीं गई यह मीटिंग. थोड़ी ओर महनत करनी पड़ेगी … यह सोचते वो बाहर आकर रोड पर टेक्सी का इंतज़ार करने लगा. और तब उसकी नज़र रचना पर पड़ी. 

"रचना?!"

रचना ने उसकी तरफ़ देखा और मुस्कुराई. 

"अरे शशांक! तुम यहाँ?" 

"यह तो मुझे तुमसे पूछना चाहिए. मैं तो इसी शहर में रहता हूँ. छोड़ कर तो तुम गई. बताओ, कैसे आना हुआ और आने की खबर क्यों नहीं दी? हम दोनों कहीं मिलते, आराम से बातें करते."

"मैं यहाँ कुछ काम से आई हूं. दो दिन हुए. कल सुबह वापस जा रही हूँ."

"चलो कॉफ़ी शॉप में बैठते हैं".

"नहीं शशांक. मेरे पास वक़्त नहीं".

शशांक ने मुस्कुराते हुए कहा "वाह रचना! अब तुम्हारे पास मेरे लिए वक़्त भी नहीं?"

रचना वो मुस्कान लौटा तो न सकी. अलबत्ता पूछ लिया "साक्षी कैसी है?"

शशांक हंस पड़ा. "वो अपने रास्ते और मैं अपने. तुम्हें गए हुए डेढ़ साल हुए. इस डेढ़ साल में कई आई, कई गई. और तुम? तुम्हारी ज़िन्दगी में कौन है अब?"

रचना को यह सवाल नागवार सा लगा. उसने जवाब में सवाल पूछ लिया "वो छोड़ो, यह बताओ तुम कैसे हो?" 

शशांक उसे देखे जा रहा था. लम्बी साँस ली और कहा "मैं ठीक नहीं हूँ रचना. और यह सब तुम्हारी महरबानी है."

रचना को इस आरोप पर गुस्सा आया और वो बोल पड़ी "मेरी महरबानी? तुमने दूरी चाही, मैं तुमसे दूर हो गई. शहर तक बदल लिया. तब तुमने एक बार भी रुकने को नहीं कहा. मैं कुछ नहीं बोली. तुम्हारे ही कहने पर तुमसे दूर चली गई और अब मुझ पर इल्ज़ाम लगा रहे हो? मैंने तुम्हारी हर बात मानी …"

"क्यों मानी?", शशांक ने एकदम से टोका. "क्यों मानी मेरी हर बात? क्यों मेरा गुस्सा बर्दाश्त किया? मेरी गलती होने पर भी क्यों तुम मुझे बार बार मनाती रही?" शशांक की आँखें अब नम हो गई थी. "जानती हो रचना … यह सब करके तुमने मुझे यह महसूस करवाया कि मैं सही हूँ और जब चाहे वैसा वर्तन कर सकता हूँ. तुम्हारे बाद ज़िन्दगी में जो भी लड़की आई उससे मैं यही उम्मीद रखता कि वह मुझे वैसे ही मनाएगी जैसे तुम मनाती थी, वैसे ही समझेगी जैसे तुम समझती हो. मैंने एक बार भी न तुम्हें समझने की कोशिश की, न तुम्हारी मर्ज़ी जानने की कोशिश की. मैं जैसा कहता तुम वैसा ही करती रही और मुझे आदत पड़ गई कि हर कोई मेरे मुताबिक ही सब करे. मेरे बुलाने पर तुम अपना हर काम छोड़ कर मेरे पास आ जाया करती. तुमने मुझे प्रेम में आलसी बना दिया रचना." 

रचना कुछ नहीं बोली. था ही नहीं अब कुछ कहने को. शशांक ने अपने आप को संभाला, एक फीकी मुस्कान के साथ रचना से पूछा "चलो कहीं आराम से बैठ कर कुछ ओर बातें करते हैं." 

रचना ने उसे नज़रें मिलाते हुए कहा "नहीं शशांक, मुझे कहीं नहीं जाना. अब मेरे पास तुम्हारे लिए वक़्त नहीं है."